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स्तम्भस्य अवनतिसंख्यानयनसूत्रम्छायावर्गाच्छोध्या नरभाकृतिगुणित शङ्कुकृतिः । सैकनरच्छायाकृतिगुणिता छायाकृतेः शोध्या ॥ ३२ ॥ तन्मूलं छायायां शोध्यं नरभानवर्गरूपेण' । भागं हृत्वा लब्धं स्तम्भस्यावनतिरेव स्यात् ॥ ३३ ॥
अत्रोदेशकः
छायाव्यवहारः
द्विगुणा पुरुषच्छायायुत्तरदशहस्तशङ्कोर्भा । एकोनत्रिंशत्सा स्तम्भावनतिश्च का तत्र । ॥ ३४ ॥
1. हस्तलिपि में नरमान के लिए नृभावर्ग पाठ है; परन्तु वह छंद की दृष्टि से अशुद्ध है ।
किसी स्तंभ अथवा ऊर्ध्वाधर शंकु की अवनति ( झुकाव ) के माप को निकालने के लिए नियम -- मानवी छाया के वर्ग और शंकु की ऊँचाई के वर्ग के गुणनफल को दी गई छाया के वर्ग में घटाया जाता है । यह शेष, मानवी छाया की वर्ग राशि में एक जोड़ने से प्राप्त योगफल द्वारा गुणि किया जाता है । इस प्रकार प्राप्त राशि दी गई छाया के वर्ग में से घटायी जाती है । परिणामी शेष के वर्गमूल को छाया के दिये गये माप में से घटाया जाता है । इस प्रकार प्राप्त राशि को जब मानवी छाया की वर्ग राशि में एक जोड़ने से प्राप्त योगफल द्वारा भाजित किया जाता है, तब स्तंभ की शुद्ध अवनति ( झुकाव ) का माप प्राप्त होता है ॥ ३२-३३ ॥
उदाहरणार्थ प्रश्न
इस समय मानवी छाया मानवी ऊँचाई से दुगुनी है। स्तंभ की छाया २९ हस्त है, और स्तंभ की ऊँचाई १३ हस्त है । यहाँ स्तंभ की अवनति का माप क्या है ? ॥ ३४ ॥ प्रासाद के भीतर
३२-३३ ) मानलो अवनत ( झुके हुए ) स्तंभ की
स्थिति अब द्वारा निरूपित है । मानलो वही स्तंभ ऊर्ध्वाधर (लंबरूप ) स्थिति में अ द द्वारा निरूपित है । क्रमशः अ स तथा अ इ उनकी छाया हैं । तब उस समय मानव की छाया और उसकी
अइ
अ
ऊँचाई का अनुपात होगी । मानलो यह अनुपात र के बराबर अद है । ब से अद पर गिराया गया लंब ब ग अवनत स्तंभ अब की अवनति निरूपित करता है। यह सरलता पूर्वक दिखाया जा सकता है कि V ( अ ब ) 2 - ( ब ग ) २ अ स - ब ग
अद
१
=
अ इ
र
अस - V ( अ स ) 2 - {
=
फ
। इससे यह देखा जा सकता है कि
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( अ स ) - ( अ ब ) 2 × र } ( र± + १, र +१
1
ब ग=
यहाँ दिया गया नियम इसी सूत्र के रूप में प्ररूपित होता है ।