SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 319
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६२ गणितसारसंग्रहः समचतुरश्रा वापा नवहस्तघना नगस्य तले । अङ्गुलविस्ताराङ्गुलखाताङ्गुलयुगलदीर्घजलधारा ॥ ४१३ ।। पतिताग्रे विच्छिन्ना वापीमुखसंस्थितान्तरालजलैः।। सम्पूर्णा स्याद्वापी गिर्युत्सेधो जलप्रमाणं किम् ।। ४२३ ।। इति खातव्यवहारे सूक्ष्मगणितम् संपूर्णम् । चितिगणितम् इतः परं खातव्यवहारे चितिगणितमुदाहरिष्यामः । अत्र परिभाषाहस्तो दीर्घो व्यासस्तदर्धमङ्गुल चतुष्कमुत्सेधः । दृष्टस्तथेष्टकायास्ताभिः कर्माणि कार्याणि ॥ ४३३ ।। इष्टक्षेत्रस्य खातफलानयने च तस्य खातफलस्य इष्टकानयने च सूत्रम्मुखफलमुदयेन गुणं तदिष्ट कागणितभक्तलब्धं यत् । चितिगणितं तद्विद्यात्तदेव भवतीष्टकासंख्या ॥ ४४३ ।। किसी पर्वत की तली में समभुज चतुर्भुज छेदवाला एक ऐसा कुआँ है जिसका तीनों विमितियों में विस्तार ९ हस्त है। पर्वत के शिखर से एक ऐसी जलधारा बहती है, जो समांग रूप से तली में , अंगुल चौड़ी, १ अंगुल ढालू खात तलों पर, और दो अंगुल लंबाई में शिखर पर रहती है । ज्योंही जलधारा कुएं में गिरना प्रारंभ करती है, त्योंही शिखर पर जलधारा टूट जाती है। उतनी जलधार से वह कुआँ पूरी तरह भर जाता है। पर्वत की ऊँचाई क्या है ? और पानी का प्रमाण क्या है? ॥ ४११-४२३ ॥ इस प्रकार खात व्यवहार में सूक्ष्म गणित नामक प्रकरण समाप्त हुआ। चिति गणित ( ईंटों के ढेर संबंधी गणित ) इसके पश्चात् हम खात व्यवहार में चिति गणित का वर्णन करेंगे। यहाँ इष्टका (इंट ) के एकक (इकाई) संबंधी परिभाषा यह है (एकक) इंट, लंबाई में एक हस्त, चौड़ाई में उसकी आधी, और मुटाई में ४ अंगुल होती है। ऐसी ईंटों के साथ समस्त क्रियाएँ की जाती हैं ।। ४३३ ॥ किसी क्षेत्र में दिये गये खात को घनाकार समाई, तथा उक्त घनाकार समाई की संवादी ईटों की संख्या निकालने के लिये नियम खात के मुख का क्षेत्रफल, गहराई द्वारा गुणित किया जाता है । परिणामी गुणनफल को इकाई इंट के घनफल द्वारा भाजित किया जाता है। इस प्रकार प्राप्त भजनफल, इंट के ढेर का (घनफल) माप समझा जाता है । वही भजनफल इंटों की संख्या का माप होता है ॥ ४४३ ।। (४४१) यहाँ ईट के ढेर का घनफल माप स्पष्टतः इकाई ईट के पदों में दिया गया है।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy