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________________ २५४] गणितसारसंग्रहः [८.१२३ अत्रोद्देशकः समचतुरश्रा वापी विंशतिरुपरीह षोडशैव तले। वेधो नव किं गणितं गणितविदाचक्ष्व मे शीघ्रम् ॥ १२३ ।। वापी समत्रिबाहुर्विशतिरुपरीह षोडशैव तले । वेधो नव किं गणितं कर्मान्तिकमौण्डूमपि च सूक्ष्मफलम् ।। १३३ ।। समवृत्तासौ वापी विंशतिरुपरीह षोडशैव तले। वेधो द्वादश दण्डाः किं स्यात्कर्मान्तिकौण्ड्रसूक्ष्मफलम् ।। १४३ ।। आयतचतुरश्रस्यत्वायामःषष्टिरेव विस्तारः। द्वादश मुखे तलेऽधं वेधोऽष्टौ किं फलं भवति ॥१५॥ नवतिरशीतिः सप्ततिरायामश्चोर्ध्वमध्यमूलेषु । विस्तारो द्वात्रिंशत् षोडश दश सप्त वेधोऽयम् ।। १६३ ।। उदाहरणार्थ प्रश्न एक ऐसा कूप है जिसका छेदीय ( sectional ) क्षेत्र समभुज चतुर्भुज है। ऊपरी (मुख) छेदीय क्षेत्र की भुजाओं में से प्रत्येक का मान २० हस्त है और नितल ( bottom ) छेदीय क्षेत्र की प्रत्येक भुजा १६ हस्त की है। गहराई (वेध) ९ हस्त है। हे गणितज्ञ, घनफल का माप शीघ्र बतलाओ ॥ १२॥ समभुज त्रिभुजीय अनुप्रस्थ छेदवाले कूप के ऊपरी छेदीय क्षेत्र की भुजाओं में से प्रत्येक २० हस्त की और नितल छेदीय क्षेत्र की भुजाओं में से प्रत्येक १६ हस्त की है; गहराई ९ हस्त है । कान्तिक घनफल, औण्ड्र घनफल और सूक्ष्म रूप से ठीक घनफल क्या-क्या हैं ? ॥ १३३ ॥ समवृत्त आकार के छेदीय क्षेत्रवाले कूप के ऊपरी छेदीय क्षेत्र का न्यास २० दंड और निम्न छेदीय क्षेत्र का व्यास १६ दंड है। गहराई १२ दंड है । कांतिक, औण्ड्र और सूक्ष्म घनफल क्या हो सकते हैं ? ॥ १३ ॥ ___ आयताकार छेदीय क्षेत्र वाले खात के ऊपरी छेदीय क्षेत्र की लंबाई ६० हस्त और चौड़ाई १२ हस्त है, तथा निम्न छेदीय क्षेत्र की लम्बाई ऊपर के छदीय क्षेत्र की आधी है. और चौड़ाई भी आधी है। गहराई ९ हस्त है। यहाँ घनफल क्या है ? ॥ १५३ ॥ ___ इसी प्रकार के एक और दूसरे कूप के ऊपरी छेदीय क्षेत्र, बीच के छेदीय क्षेत्र और निम्न छेदीय क्षेत्र की लम्बाईयाँ क्रशमः ९०,८० और ७० हस्त हैं, तथा चौड़ाईयाँ क्रमशः ३२,१६ और १० हस्त हैं । यह गहराई में ७ हस्त है । इष्ट घनफल का माप दो ? ॥ १६३ ॥ 'ऊ विपाटित स्तूप की ऊँचाई है । घनाकार समाई के सूक्ष्म माप के लिये दिये गये इस सूत्र का सत्यापन कर्मातिक और औण्डू फलों के निम्नलिखित मानों की सहायता से किया जाता है। / + २ का " २ ) आ = (अ) + (ब' )२ ४ऊ, इसी प्रकार, सम त्रिभुजाकार एवं आयताकार आधारवाले तिर्यक छिन्न ( truncated ) स्तूप तथा सम वृत्ताकार आधार वाले तिर्यक् छिन्न शंकुओं के संबंध में भी सत्यापन किया जा सकता है।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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