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-७. २३०३]
क्षेत्रगणितव्यवहारः
अत्रोदेशकः
दश वृत्तस्य विष्कम्भः शिञ्जिन्यभ्यन्तरे सखे ।
दृष्टाष्टौ हि पुनस्तस्याः कः स्यादधिगमो वद ।। २२८३ ॥
ज्यासंख्यां च बाणसंख्यां च ज्ञात्वा समवृत्तक्षेत्रस्य मध्यव्याससंख्यानयनसूत्रम् - भक्तश्चतुर्गुणेन च शरेण गुणवर्गराशिरिषुसहितः । समवृत्तमध्यमस्थितविष्कम्भोऽयं विनिर्दिष्टः ।। २२९३ ।।
[ २४९
अत्रोद्देशकः
कस्यापि च समवृत्तक्षेत्रस्याभ्यन्तराधिगमनं द्वे । ज्या दृष्टाष्टौ दण्डा मध्यव्यासो भवेत्कोऽत्र ।। २३०३ ॥
समवृत्तद्वयसंयोगे एका मत्स्याकृतिर्भवति । तन्मत्स्यस्य मुखपृच्छविनिर्गत रेखा कर्तव्या । तया रेखया अन्योन्याभिमुखधनुर्द्वयाकृतिर्भवति । तन्मुखपुच्छविनिर्गत रेखैव तद्धनुर्द्वयस्यापि ज्याकृतिर्भवति । तद्धनुर्द्वयस्य शरद्वयमेव वृत्तपरस्परसंपातशरौ ज्ञेयौ । समवृत्तद्वयसंयोगे तयोः संपातशरयोरानयनस्य सूत्रम् -
उदाहरणार्थ प्रश्न
किसी दिये गये वृत्त के व्यास का माप १० है । साथ ही ज्ञात है कि भीतरी धनुष-डोरी का माप ८ है । हे मित्र, उस धनुष डोरी के संबंध में बाण रेखा का मान निकालो || २२८३ ॥ संख्यात्मक मान ज्ञात हों, तब दिये गये वृत्त के व्यास नियम-
जब धनुष-डोरी और बाण के संख्यात्मक मान को निकालने के लिये
धनुष - डोरी के मान के वर्ग का निरूपण करने वाली संख्या, ४ द्वारा गुणित बाण के मान के द्वारा भाजित की जाती है । तब परिणामी भजनफल में बाण का मान जोड़ा जाता है । इस प्रकार प्राप्त राशि नियमित वृत्त की, केन्द्र से होकर मापी गई, चौड़ाई का माप होती है ॥ २२९३ ॥
उदाहरणार्थ प्रश्न
किसी समवृत्त क्षेत्र के संबंध में, बाण रेखा २ दंड, और धनुष डोरी ८ दंड है । इस वृत्त के संबंध में व्यास का मान क्या हो सकता है ? || २३०३॥
। मुख से पुच्छ को मिलाने
जब दो वृत्त परस्पर एक दूसरे को काटते हैं, तब मछली के है । इस मत्स्याकृति के संबंध में मुख से पुच्छ को मिलानेवाली रेखा रेखा की सहायता से एक दूसरे के सम्मुख दो धनुषों की उत्पत्ति होती है। वाली सरल रेखा इन दोनों धनुषों की धनुष-डोरी होती है । इन दो धनुषों के संबंध में दो बाण रेखाएँ पारस्परिक अतिछाड़ी ( overlapping ) वृत्तों से संबंधित दो बाण रेखाओं को बनाने दूसरे को काटते हैं, तब अतिवादी मानों को निकालने के लिये नियम
वा समझी जाती हैं । जब दो समवृत्त परस्पर एक ( overlapping ) भाग से संबंधित बाण रेखाओं के ग० सा० सं०-३२
आकार की आकृति उत्पन्न होती खींची जाती है। इस