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________________ २३६]] गणितसारसंग्रहः भूमिर्द्विषष्टिशतमथ चाष्टादश वदनमत्र संदृष्टम् । लम्बश्चतुश्शतीदं क्षेत्रं भक्तं नरेश्चतुर्भिश्च ॥ १७७३ ॥ एकद्विकत्रिकचतुःखण्डान्येकैकपुरुषलब्धानि । प्रक्षेपतया गणितं तलमप्यवलम्बकं हि ॥ १७८३ ।। भूमिरशीतिर्वदनं चत्वारिंशचतुर्गुणा षष्टिः। अवलम्बकप्रमाणं त्रीण्यष्टौ पञ्च खण्डानि ॥ १७९३ ॥ - स्तम्भद्वयप्रमाणसंख्यां ज्ञात्वा तत्स्तम्भद्वयाग्रे सूत्रद्वयं बद्ध्वा तत्सूत्रद्वयं कर्णाकारेण इतरेतरस्तम्भमूलं वा तत्स्तम्भमूलमतिक्रम्य वा संस्पृश्य तत्कर्णाकारसूत्रद्वयस्पर्शनस्थानादारभ्य अधःस्थितभूमिपर्यन्तं तन्मध्ये एक सूत्रं प्रसार्य तत्सूत्रप्रमाणसंख्यैव अन्तरावलम्बकसंज्ञा भवति । अन्तरावलम्बकस्पर्शनस्थानादारभ्य तस्यां भूम्यामुभयपार्श्वयोः कर्णाकारसूत्रद्वयस्पर्शनपर्यन्तमाबाधासंज्ञा स्यात् । तदन्तरावलम्बकसंख्यानयनस्य आबाधासंख्यानयनस्य च सूत्रम्स्तम्भौ रज्ज्वन्तरभूहृतौ स्वयोगाहृतौ च भूगुणितौ। आबाधे ते वामप्रक्षेपगुणोऽन्तरवलम्बः ॥ १८०३ ॥ दो बराबर भुजाओं वाले चतुर्भुज के आधार का माप १६२ है, और ऊपरी भुजा का माप १८ है । दो भुजाओं में से प्रत्येक का मान ४०० हैं । इस प्रकार, इस आकृति से घिरा हुआ क्षेत्रफल, ४ मनुष्यों में विभाजित किया जाता है। मनुष्यों को प्राप्त भाग क्रमशः १.२.३, और ४ के अनुपात में हैं। इस अनुपाती विभाजन के अनुसार प्रत्येक दशा में क्षेत्रफल, आधार और दो बराबर भुजाओं में से एक के मानों को बतलाओ ।। १७७३-७८३ ॥ दिये गये चतुर्भुज क्षेत्र के आधार का माप ८० है, ऊपरी भुजा ४० है, तथा दो बराबर भुजाओं में से प्रत्येक ४४६० है । हिस्से क्रमशः ३,८ और ५ के अनुपात में हैं। इष्ट भागों के क्षेत्रफल, आधारों और भुजाओं के मानों को निकालो ।। १७९ ॥ ज्ञात ऊँचाई वाले दो स्तंभों में से प्रत्येक के ऊपरी सिरे में दो धागे ( सूत्र ) बंधे हुए हैं। इन दो भागों में से प्रत्येक इस तरह फैला हुआ है कि वह सम्मुख स्तंभ के मूल भाग को कर्ण के रूप में स्पर्श करता है, अथवा दूसरे स्तंभ के पार जाकर भूमि को स्पर्श करता है । उस बिन्दु से, जहाँ दो कर्णाकार धागे मिलते हैं, एक और दूसरा धागा इस तरह लटकाया जाता है, कि वह लंब रूप होकर भूमि को स्पर्श करता है । इस अंतिम धागे के माप का नाम अंतरावलम्बक या भीतरी लंब होता है । जहाँ पर यह लंबरूप धागा भूमि को स्पर्श करता है, उस बिन्दु से किसी भी ओर प्रस्थान करने वाली रेखा उन बिन्दुओं तक जाकर (जहाँ कर्ण धागे भूमि को स्पर्श करते हैं ) आबाधा अथवा आधार का खंड कहलाती है। ऐसे लम्ब तथा आवाधों के मानों को प्राप्त करने के नियम प्रत्येक स्तम्भ के माप को स्तम्भ के मूल से लेकर कर्ण धागे के भूमि स्पर्श बिन्दु तक के बीच की लम्बाई वाले आधार को माप द्वारा भाजित किया जाता है। इस प्रकार प्राप्त प्रत्येक भजनफल, भजनफलों के योग द्वारा भाजित किया जाता है। परिणामी भजनफलों को संपूर्ण आधार के माप द्वारा गुणित करने पर क्रम से आबाधाओं के माप प्राप्त होते हैं । ये आबाधाओं के माप, क्रमशः विलोम क्रम में, ऊपर दिये गये प्रथम बार में प्राप्त भजनफलों द्वारा गुणित होने पर, प्रत्येक दशा में अंतरावलम्बक (भीतरी लम्ब) को उत्पन्न करते हैं ॥ १८०१॥ गह का मान निकालने के लिये - म+न+प+ख . केवल 'न' से ही नहीं वरन् म+न से भी गुणित करना पड़ता है।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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