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________________ -७. १७६३ ] क्षेत्रगणितव्यवहारः [ २३५ अत्रोद्देशकः वदनं सप्तोक्तमधः क्षितिस्त्रयोविंशतिः पुनस्त्रिंशत् । बाहू द्वाभ्यां भक्तं चैकैकं लब्धमत्र का भूमिः ॥ १७६३ ॥ उदाहरणार्थ प्रश्न ऊपरी-भुजा का माप ७ है, नीचे आधार का माप २३ है, और शेष भुजाओं में से प्रत्येक का माप ३० है। ऐसे क्षेत्र में अंतराविष्ट क्षेत्रफल ऐसे दो भागों में विभाजित किया जाता है कि प्रत्येक को एक ( हिस्सा ) प्राप्त होता है। यहाँ निकाले जाने वाले आधार का मान क्या है ? ।। १७६३ ।। द + 7 x चर (4x7) म+न+प+ख ; च म+न+प+ख: इफ+चझ इग (अ४६+) म+न+प+ख , गह + इफ + __(४६+4)x म+न+प+ख. गक म+न+प+ख कल+गह इत्यादि। यह सरलतापूर्वक दिखाया जा सकता है कि चछ = छज - चझ "चह इफ-चझ ' . चछ (छज+चझ) (छज)२-(च झ)२ - चइ ( इफ+ चझ) (इ फ)२ - (च झ )२ चछ (छज+चझ) म+न+प+ख ' चइ (इफ+ चझ) म (छज)२-(चझ) - म+न++ख ; .. (इफ )२ - ( चझ )२ म .:. (हफ)२ = म (छ ज- च झरे),. चझ)म+न+प+ख "म+न+प+ख xम+ब'; और इ फ /द२ - बरे -xम+ब२ । इसी प्रकार अन्य सूत्र सत्यापित किये जा म+न+प+ख न सकते हैं। यद्यपि इस पुस्तक में ग्रंथकार ने केवल यह कहा है कि भजनफल को भागों के मानों से गणित करना पड़ता है, तथापि वास्तव में भजनफल को प्रत्येक दशा में भागों के मानों से ऊपरी भुजा तक की प्ररूपण करने वाली संख्या के द्वारा गुणित करना पड़ता है। उदाहरणार्थ, पिछले पृष्ठ की आकृति में +(च T +ख
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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