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________________ -७. १६३३ ] क्षेत्रगणितव्यवहारः [२२९ अत्रोद्देशकः कस्यापि विषमबाहोस्यश्रक्षेत्रस्य सूक्ष्मगणितमिदम् । द्वे रूपे निर्दिष्टे त्रीणीष्टं भमिबाहवः के स्युः ॥ १५९३ ॥ पुनरपि सूक्ष्मगणितफलसंख्या ज्ञात्वा तत्फलवद्विषमत्रिभुजानयनसूत्रम्स्वाष्टहतात्सेष्टकृतेः कृतिमूलं चेष्टमितरदितरहृतम् । ज्येष्ठं स्वाल्पा?नं स्पल्पाधं तत्पदेन चेष्टेन ॥ १६०३ ॥ क्रमशो हत्वा च तयोः संक्रमणे भूभुजौ भवतः। इष्टामितरदोः स्याद्विषमत्रकोणके क्षेत्रे ।। १६१३ ॥ ___ अत्रोद्देशकः द्वे रूपे सूक्ष्मफलं विषमत्रिभुजस्य रूपाणि । त्रीणीष्टं भूदोषौ कथय सखे गणिततत्त्वज्ञ ॥ १६२३ ।। सूक्ष्मगणितफलं ज्ञात्वा तत्सूक्ष्मगणितफलवत्समवृत्तक्षेत्रानयनसूत्रम् - गणितं चतुरभ्यस्तं दशपदभक्त पदे भवेड्यासः।। सूक्ष्मं समवृत्तस्य क्षेत्रस्य च पूर्ववत्फलं परिधिः ॥ १६३३ ।। उदाहरणार्थ प्रश्न किसी असमान भुजाओं वाली त्रिभुजाकार आकृति के संबंध में यह बतलाया गया है कि शुद्ध क्षेत्रफल का माप २ है, और मन से चुनी हुई राशि ३ है। आधार का मान तथा भुजामों का मान क्या है ? ॥ १५९॥ पुनः, विषम भुजाओं वाले तथा दत्त शुद्ध माप क्षेत्रफल वाले त्रिभुज क्षेत्र को प्राप्त करने के लिये दूसरा नियम दिये गये क्षेत्रफल के माप में ८ का गुणा कर, और तब उसमें मन से चुनी हुई राशि के वर्ग को जोड़कर, प्राप्त योगफल का वर्गमूल प्राप्त किया जाता है। यह और मन से चुनी हुई राशि एक दूसरे के द्वारा भाजित की जाती हैं। इन भजनफलों में से बड़ा, छोटे भजनफल की अर्द्धराशि द्वारा हासित किया जाता है। इस प्रकार प्राप्त शेष राशि और यह छोटे भजनफल की अर्द्धराशि क्रमशः ऊपर लिखित वर्गमूल और मन से चुनी हुई संख्या द्वारा गुणित की जाती हैं। इस प्रकार प्राप्त गुणनफलों के संबंध में संक्रमण क्रिया करने पर आधार और भुजाओं में से किसी एक का मान प्राप्त होता है। मन से चुनी हुई राशि की आधी राशि विषम त्रिभुज की दूसरी भुजा की अहीं होती है ॥ १६०-१६११॥ उदाहरणार्थ प्रश्न विषम त्रिभुज के संबंध में क्षेत्रफल का शुद्ध माप ३ है । हे गणितज्ञ सखे, आधार तथा भुजाओं के माप बतलाओ ॥ १६२ ॥ दत्त सूक्ष्म क्षेत्रफल वाले, किसी समवृत्त क्षेत्र को प्राप्त करने के लिये नियम सूक्ष्म क्षेत्रफल का माप ४ द्वारा गुणित कर, १० के वर्गमूल द्वारा भाजित किया जाता है। इस प्रकार परिणामी भजनफल के वर्गमूल को प्राप्त करने से व्यास का मान प्राप्त होता है। समवृत्त क्षेत्र के संबंध में, ऊपर समझाये अनुसार, क्षेत्रफल और परिधि का माप प्राप्त किया जाता है ॥ १६३३ ॥ (१६३३) इस गाथा में दिया गया नियम सूत्र, क्षेत्रफल = E४/१० , जहाँ द वृत्त का व्यास है, से प्राप्त किया गया है।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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