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गणित सारसंग्रहः
अत्रोद्देशकः
एकद्विकद्विकत्रिकचतुष्कसप्तैकसाष्टकानां च । गणक चतुर्णां शीघ्रं बीजैरुत्थाप्य कोटिभुजाः ।। १२३३ ॥ आयतचतुरश्राणां क्षेत्राणां विषमबाहुकानां च । कर्णोऽत्र पञ्चषष्टिः क्षेत्राण्याचक्ष्व कानि स्युः ॥। १२४३ ।।
_इष्टजन्यायतचतुरश्रक्षेत्रस्य रज्जुसंख्यां च कर्णसंख्यां च ज्ञात्वा तज्जन्यायतचतुरश्रक्षेत्रस्य
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भुजकोटिसंख्यानयनसूत्रम् -
कर्णकृतौ द्विगुणायां रज्ज्वर्धकृतिं विशोध्य तन्मूलम् । रज्ज्वधे संक्रमणीकृते भुजा कोटिरपि भवति ।। १२५३ ।। अत्रोद्देशकः परिधिः स चतुस्त्रिंशत् कर्णश्चात्र त्रयोदशो दृष्टः । जन्यक्षेत्रस्यास्य प्रगणय्याचक्ष्व कोटिभुजौ । १२६३ ।।
उदाहरणार्थ प्रश्न
हे गणितज्ञ, दिये गये बीजों की सहायता से, ऐसे चार आधारों के मानों को शीघ्र बतलाओ, जिनके क्रमशः १ और २, ८ बीज हैं, तथा जिनके आधार भिन्न भिन्न हैं । ( इस प्रश्न में ) दशामें, इष्ट क्षेत्रों के मापों को बतलाओ ।। १२३३ - १२४३॥
जिसकी परिमिति का माप और कर्ण का माप ज्ञात है ऐसे जन्य आयत क्षेत्र के आधार और उसकी लम्ब भुजा के संख्यात्मक मानों को निकालने के लिये नियम -
कर्ण के वर्ग को २ से गुणित करो। परिणामी गुणनफल में से परिमिति की अर्द्धराशि के वर्ग को घटाओ। तब परिणामी अंतर के वर्गमूल को प्राप्त करो। यदि यह वर्गमूल आधी परिमिति के साथ संक्रमण क्रिया में लाया जाय, तो इष्ट आधार और लम्ब भुजा भी उत्पन्न होती हैं ।। १२५३ ॥
आयत क्षेत्रों की लंब भुजाएँ और
२
और ३, ४ और ७, तथा 9 और यहाँ कर्ण का मान ६५ है । इस
उदाहरणार्थ प्रश्न
इस दशा में परिमिति ३४ है, और कर्ण १३ है । इस जन्य आकृति के संबंध में लंब भुजा और आधार के मापों को गणना के बाद बतलाओ ॥ १२६ ॥
(१२५३) यदि किसी आयत की भुजाएं अ और ब द्वारा प्ररूपित हों, तो का माप होता है और परिमिति का माप २अ + २ब होता है । यह सरलतापूर्वक है कि
२ अ + २ ब २
[ ७. १२३३
+
२ अ + २ब
'२ ( /अ + ब१) - ( २३
२
ब
२ अ + २ ब २
-N २ ( Va* + ** )९.
-
(२ अ+ )' }
२
ये दो सूत्र वर्णित रीति का यहां बीजीय रूप से निरूपण करते हैं ।
अ' +बर कर्ण देखा जा सकता
÷ २ = अ; और
÷२=ब।