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________________ -६. ३१०३] मिश्रकव्यवहारः अत्रोद्देशकः सप्ताष्टनवदशानां षोडशपञ्चाशदेकषष्ठीनाम् । ब्रूहि चतुःसंकलितं सूत्राणि पृथक् पृथक् कृत्वा ॥ ३०८३ ।। ___ संघातसंकलितानयनसूत्रम्गच्छस्त्रिरूपसहितो गच्छचतुर्भागताडितः सैकः । सपदपदकृतिविनिनो भवति हि संघातसंकलितम् ।। ३०९३ ।। __ अत्रोद्देशकः सप्तकृतेः षषष्ट्यास्त्रयोदशानां चतुर्दशानां च । पञ्चायविंशतीनां किं स्यात् संघातसंकलितम् ।। ३१०६ ॥ भिन्नगुणसंकलितानयनसूत्रम्समदलविषमखरूपं गुणगुणितं वर्गताडितं द्विष्ठम् । उदाहरणार्थ प्रश्न दी हुई संख्याएँ ७,८, ९, १०, १६, ५० और ६१ हैं । आवश्यक नियमों को विचारकर. प्रत्येक दशा में, चार निर्दिष्ट राशियों के योग को बतलाओ ॥३०॥ (पूर्व ग्यवहृत चार प्रकार की श्रेढियों के ) सामूहिक योग को निकालने के लिये नियम पदों की संख्या को ३ में जोड़ते हैं, और प्राप्तफल को पदों की संख्या के चतुर्थ भाग द्वारा गुणित करते हैं । तब उसमें एक जोड़ा जाता है। इस परिणामी राशि को जब पदों की संख्या के वर्ग को पदों की संख्या द्वारा बढ़ाने से प्राप्तराशि द्वारा गुणित किया जाता है, तब वह इष्ट सामूहिक योग को उत्पन्न करती है ॥३०९।। उदाहरणार्थ प्रश्न ४९, १६, १३, १४ और २५ द्वारा निरूपित विभिन्न श्रेढियों के सम्बन्ध में इष्ट सामूहिक योग क्या होगा ? ॥३१०॥ गुणोत्तर श्रेढि में भिन्नों की श्रेढि के योग को निकालने के लिये नियम श्रेढि के पदों की संख्या को अलग-अलग स्तम्भ में, क्रमशः, शून्य तथा १ द्वारा चिह्नित (marked) कर लिया जाता है। चिह्नित करने की विधि यह है कि युग्ममान को आधा किया जाता है, और अयुग्म मान में से १ घटाया जाता है। इस विधि को तब तक जारी रखा जाता है, जब तक कि अन्ततोगत्वा शून्य प्राप्त नहीं होता। तब इस शून्य और १ द्वारा बनी हुई प्ररूपक श्रेढि को, क्रमवार, अन्तिम १ से उपयोग में लाते हैं, ताकि यह १ साधारण निष्पत्ति द्वारा गुणित हो । जहाँ । अभिधानी पद (denoting item) रहता है, वहाँ इसे फिर से साधारण निष्पत्ति द्वारा गुणित करते हैं। और जहाँ शून्य अभिधानी पद होता है, वहाँ वर्ग प्राप्त करने के लिये उसे साधारण निष्पत्ति द्वारा (३०९३ ) बीजीय रूप से, { (न+३) - +१ (न' + न ) योगों का सामूहिक योग है, अर्थात् नियम २९६, ३.१ और ३०५ से ३०५३ में बतलाई गई श्रेटियों के योगों तथा 'न' तक की प्राकृत संख्याओं के योग ( इन सब योगों) का सामूहिक योग है।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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