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गणितसारसंग्रहः
अत्रोद्देशकः
आदिः षट् पञ्च चयः पदमप्यष्टादशाथ संदृष्टम् । एकाकोत्तरचितिसंकलितं किं पदाष्टदशकस्य ॥ ३०६३ ॥ चतुरसंकलितानयनसूत्रम् -
सैकपदार्धपदाह तिरश्वैर्निहता पदोनिता त्र्याप्ता । सैकपदघ्ना चितिचितिचितिकृतिघनसंयुतिर्भवति ।। ३०७३ ।।
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उदाहरणार्थ प्रश्न
यह देखा जाता है कि किसी श्रेढि का प्रथम पद ६ है, प्रचय ५ है, और पदों की संख्या १८ | श्रेढियों के योगों के योग को बतलाओ, जो कि १ प्रथम पद
इन १८ पदों के सम्बन्ध में, उन विभिन्न वाली और १ प्रचय वाली हैं ॥ ३०६३ ।।
( नीचे निर्दिष्ट और किसी दी हुई संख्या द्वारा निरूपित ) चार राशियों के योग को निकालने के लिये नियम
दी गई संख्या १ द्वारा बढ़ाई जाकर, आधी की जाती है, और तब निज के द्वारा तथा ७ द्वारा गुणित की जाती है । इस परिणामी गुणनफल में से वही दत्त संख्या घटाई जाती है। परिणामी शेष को ३ द्वारा भाजित किया जाता है । इस प्रकार प्राप्त भजनफल जब एक द्वारा बढ़ाई गई उसी दत्त संख्या द्वारा गुणित किया जाता है, तब चार निर्दिष्ट राशियों का इष्ट योग प्राप्त होता है। ऐसी चार निर्दिष्ट राशियाँ, क्रमशः दी हुई संख्या तक की प्राकृत संख्याओं का योग, दी गई संख्या तक की प्राकृत संख्याओं के योगों के योग, दी गई संख्या का वर्ग और दी गई संख्या का घन होती हैं ||३०७३॥
वाली
पद है ।
[ ६.३०६३
( ३०५–३०५३ ) बीजीय रूप से, [{{२ न८१) ब े+व+अब } (न- १ ) +अ (अ+१)] न
यह समान्तर श्रेदि का योग है, जहाँ प्रथमपद किसी सीमित संख्या तक की प्राकृत संख्याओं के योग का निरूपण करता है-ऐसी सीमित संख्या जो किसी समान्तर श्रेटि का ही एक
( ३०७३ ) बीजीय रूप से,
न X (न + १) X ७
२
- न
-X ( न + १ )
३
इस नियम में, निर्दिष्ट चार राशियों का योग है । यहाँ चार निर्दिष्ट राशियाँ, क्रमशः, ये हैं :( १ ) 'न' प्राकृत संख्याओं का योग, ( २ ) 'न' तक की विभिन्न प्राकृत संख्याओं द्वारा क्रमशः सीमित विभिन्न प्राकृत संख्याओं के योग, ( ३ ) 'न' का वर्ग और ( ४ ) 'न' का घन ।