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-६. १२०३]
मिश्रकग्यवहारः
अत्रोद्देशकः जम्बूजम्बीररम्भाक्रमुकपनसुखर्जूरहिन्तालतालीपुन्नागाम्राद्यनेकद्रुभकुसुमफलैनम्रशाखाधिरूढम् । भ्राम्य गाजवापीशुकपिककुलनानाध्वनिव्याप्तदिक्क पान्थाः श्रान्ता वनान्तं श्रमनुदममलं ते प्रविष्टाः प्रहृष्टाः॥ ११६३ ॥ राशित्रिषष्टिः कदलीफलानां संपीड्य संक्षिप्य च सप्तभिस्तैः । पान्थैत्रयोविंशतिभिर्विशुद्धा राशेस्त्वमेकस्य वद प्रमाणम् ॥ ११७ ॥ राशीन पुनर्वादश दाडिमानां समस्य संक्षिप्य च पश्चभिस्तैः । पान्थैनरैविंशतिभिर्निरेकैर्भक्तांस्तथैकस्य वद प्रमाणम् ॥ ११८३ ।। दृष्ट्वाम्रराशीन पथिको यथैकत्रिंशत्समूहं कुरुते त्रिहीनम् । शेषे हृते सप्ततिभित्रिमित्रैर्नरैर्विशुद्धं कथयैकसंख्याम् ।। ११९३ ॥ दृष्टाः सप्तत्रिंशत्कपित्थफलराशयो वने पथिकैः। सप्तदशापोह्य हृते व्येकाशीत्यांशकप्रमाणं किम् ॥ १२०३ ॥
उदाहरणार्थ प्रश्न किसी वन का प्रकाशवान और ताजगी लाने वाला सीमास्थ (outskirts ) बहुत से ऐसे वृक्षों से पूर्ण था जिनकी शाखायें फल-फूल के भार से नीचे झुक गई थीं। ऐसे वृक्षों में जम्बू, जम्बीर, रम्भा, क्रमुक, पनस, खजूर, हिन्ताल, ताली, पुन्नाग और आम (समाविष्ट) थे। वह स्थान तोतों और कोयलों की ध्वनि से व्याप्त था। तोते और कोयलें ऐसे झरनों के किनारे पर थीं जिनमें कमलों पर भ्रमर भ्रमण कर रहे थे। ऐसे बनान्त में कुछ थके हुए यात्रियों ने सानन्द प्रवेश किया ॥ १११॥
केलों की ६३ ढेरियाँ और ७ केले के फल २३ यात्रियों में बराबर-बराबर बाँट दिये गये जिससे कुछ भी शेष न बचा। एक ढेरी में फलों की संख्या बतलाओ॥ ११७१॥
फिर से, अनार की १२ ढेरियाँ और ५ अनार के फल उसो तरह १९ यात्रियों में बाँटे गये । एक ढेरी में कितने अनार थे? ॥ १९८१॥
एक यात्री ने आमों की बराबर फलों वाली ढेरियाँ देखीं। ३१ ढेरियाँ ३ फलों द्वारा हासित कर दी गई। जब शेषफल ७३ व्यक्तियों में बराबर-बराबर बाँट दिये गये तो शेष कुछ भी न रहा। इन ढेरियों में से किसी भी एक में कितने फल थे? ॥ ११९३ ॥
वनमें यात्रियों द्वारा ३७ कपित्थ फल की ढेरियाँ देखी गई। १७ फल अलग कर दिये गये शेषफल ७९ व्यक्तियों में बराबर-बराबर बाँटने पर कुछ भी शेष न रहा। प्रत्येक को कितने-कितने फल मिले ? ॥ १२०१॥
है, और तब व का मान सरलता पूर्वक निकाला जा सकता है।
इससे यह देखा जाता है कि जब व का मान निकालने के लिये हम त, और स को कुट्टीकार विधि के अनुसार बर्तते हैं; तब छेद अथवा भाजक को त, के सम्बन्ध में आ, आ३ लेना पड़ता है; अथवा, प्रथम दो समीकारों में भाजकों के लघुत्तम समापवर्त्य को लेना पड़ता है।