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________________ ११. ] गणितसारसंग्रहः [ ६. ९०३ अत्रोद्देशकः द्वाभ्यां त्रीणि त्रिभिः पञ्च पञ्चभिः सप्त मानकैः । दाडिमाम्रकपित्थानां फलानि गणितार्थवित् ॥ ९०३ ।। कपित्थात् त्रिगुणं ह्यानं दाडिमं षड्गुणं भवेत् । क्रीत्वानय सखे शीघ्रं त्वं षट्सप्ततिभिः पणैः ।। ९१३ ॥ दध्याज्यक्षीरघटैर्जिनबिम्बस्याभिषेचनं कृतवान् । जिनपुरुषो द्वासप्ततिपलैस्त्रयः पूरिताः कलशाः ॥ ९२३ ।। द्वात्रिंशत्प्रथमघटे पुनश्चतुर्विंशतिद्धितीयघटे। षोडश तृतीयकलशे पृथक् पृथक् कथय मे कृत्वा ।। ९३३ ।। तेषां दधिघृतपयसां ततश्चतुर्विंशतिघृतस्य पलानि । षोडश पयःपलानि द्वात्रिंशद् दधिपलानीह ॥ ९४३ ।। वृत्तिस्त्रयः पुराणाः पुंसश्चारोहकस्य तत्रापि । सर्वेऽपि पश्चषष्टिः केचिद्भग्ना धनं तेषाम् ।। ९५३ ।। संनिहितानां दत्तं लब्धं पुंसा दशैव चैकस्य । के संनिहिता भन्नाः के मम संचिन्त्य कथय त्वम् ॥ ९६३ ।। उदाहरणार्थ प्रश्न अनार, आम और कपित्थ क्रमशः २ पण में ३, ३ पण में ५ और ५ पण में ७ की दर से प्राप्य हैं । हे गणना के सिद्धांतों को जानने वाले मित्र ! ७६ पणों के फल लेकर शीघ्र आओ ताकि आमों की संख्या कपित्थों की संख्या की तिगुनी हो और अनारों की संख्या ६ गुनी हो ॥ ९०-९१३ ॥ किसी जिनानुगामी ने जिन प्रतिमा का दही, घी और दुग्ध से पूरित कलशों द्वारा अभिषेक कराया । इनके ७२ पलों द्वारा ३ पात्र भर गये। प्रथम घट में ३२ पल, दूसरे घट में २४ तथा तीसरे में १६ पल पाये गये। इन दधि, घी, दूध मिश्रित पात्रों में मिश्रित द्रव्यों को अलग-अलग ज्ञात और प्राप्त करो जबकि कुल मिलाकर २४ पल घी, १६ पल दूध और ३२ पल दही है ॥ ९२-९४३ ॥ एक अश्वारोही सैनिक का वेतन ३ पुराण था। इस दर पर कुल ६५ व्यक्ति नियुक्त थे। उनमें से कुछ मारे गये और उनके वेतन की रकम रणक्षेत्र में शेष रहनेवाले सैनिकों को दे दी गई । इस प्रकार, प्रत्येक मनुष्य को १० पुराण प्राप्त हुए। मुझे बतलाओ कि रणक्षेत्र में कितने सैनिक खेत रहे और कितने जीवित बचे ? ॥९५-९६३ ॥ करते हैं । इस प्रकार हमें ४६, ३४३,७४१ से क्रमशः ४, ६ और " प्राप्त होते हैं । ये समानुपाती भाग हैं। ८८३ और ८९१ सूत्रों में इन समानुपाती भागों के संबंध में प्रक्षेप की क्रिया का प्रयोग करना पड़ता है। परन्तु, ८७१ करण नियम में यह क्रिया पूरी तरह वर्णित है।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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