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________________ ९८] गणितसारसंग्रहः [-६.३५ मूलकालवृद्धिमिश्रविभागानयनसूत्रम्मिश्रादूनितराशिः कालस्तस्यैव रूपलाभेन । सैकेन भजेन्मूलं स्वकालमूलोनितं फलं मिश्रम् ॥३५॥ अत्रोद्देशकः पञ्चकशतप्रयोगे न ज्ञातः कालमूलफलराशिः । तन्मिभं द्वाशीतिमूलं किं कालवृद्धी के ॥ ३६॥ बहुमूलकालवृद्धिमिश्रविभागानयनसूत्रमविभजेत्स्वकालताडितमूलसमासेन फलसमासहतम् । कालाभ्यस्तं मूलं पृथक् पृथक् चादिशेद् वृद्धिम् ।। ३७ ।। अत्रोद्देशकः चत्वारिंशत्त्रिंशविंशतिपञ्चाशदत्र मूलानि । मासाः पञ्चचतुस्लिकषट फलपिण्डश्चतुस्त्रिंशत् ॥३८॥ १ हस्तलिपि में यह अशुद्ध रूप प्राप्य है; शुद्ध रूप 'द्वयशीति' छेद की आवश्यकता को समाधानित नहीं करता है। मूलधन, ब्याज और समय को उनके मिश्रयोग में से अलग-अलग प्राप्त करने के लिये नियम दिये गये मिश्रयोग में से कोई मन से चुनी हुई संख्या को घटाने पर इष्ट समय प्राप्त हुआ मान लिया जाता है । उस अवधि के लिये पर ब्याज निकालकर उसमें 1 जोड़ते हैं। तब, दिये गये मिश्रितयोग में से मन से चुनी गई अवधि घटाकर शेष राशि को उपर्युक्त प्राप्त राशि द्वारा विभाजित करते हैं । परिणामी भजनफल इष्ट मूलधन होता है। मिश्रयोग को निज के संवादी समय और मूलधन द्वारा ह्वासित करने पर इष्ट ब्याज प्राप्त होता है॥३५॥ उदाहरणार्थ प्रश्न ५ प्रतिशत प्रतिमाह के अर्घ से उधार दी गई रकम के विषय में अवधि, मूलधन और ब्याज का निरूपण करने वाली राशियाँ ज्ञात नहीं हैं। उनका मिश्रयोग ८२ है। अवधि, मूलधन और ब्याज निकालो ॥३६॥ विभिन्न धनों पर विभिन्न अवधियों में उपार्जित विभिन्न ब्याजों को उन्हीं के मिश्रयोग में से अलग-अलग ब्याज प्राप्त करने के लिये नियम प्रत्येक मूलधन संवादी समय से गुणित होकर तथा ब्याजों की कुल दत्त रकम द्वारा गुणित होकर, अलग-अलग उन गुणनफलों के योग द्वारा विभाजित किया जाता है जो प्रत्येक मूलधन को उसके संवादी समय द्वारा गुणित करने पर प्राप्त होते हैं। प्राप्त फल उस मूलधन सम्बन्धी ब्याज घोषित किया जाता है ॥३७॥ उदाहरणार्थ प्रश्न इस प्रश्न में दिये गये मूलधन ४०, ३०, २० और ५० हैं: और मास क्रमशः ५, ४, ३ और ६ हैं । ब्याज की राशियों का योग ३४ है। प्रत्येक व्याज राशि निकालो ॥३८॥ (३५) यहाँ ३ अज्ञात राशियाँ दी गई हैं। समय का मान मन से चुन लिया जाता है और अन्य दो राशियाँ अध्याय ६ की २१वीं गाथा के नियमानुसार प्राप्त हो जाती हैं। __ ध, अ, म (३७) प्रतीक रूप से, ध,अ, +ध,अधि .अ.+... =ब, और ___. अ. म --- = ब; जहाँ म ब, +4 ध,अ, +ध.अ. +ध अ + +...; ध, धन, ध +... आदि विभिन्न मूलधन हैं तथा अ,, अर, अ, आदि विभिन्न अवधियाँ हैं।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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