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५. त्रैराशिकव्यवहारः त्रिलोकबन्धवे तस्मै केवलज्ञानभानवे । नमः श्रीवर्धमानाय निर्धूताखिलकर्मणे ॥१॥ इतः परं त्रैराशिकं चतुर्थव्यवहारमुदाहरिष्यामः ।
___ तत्र करणसूत्रं यथात्रैराशिकेऽत्र सारं फलमिच्छासंगुणं प्रमाणाप्तम्। इच्छाप्रमयोः साम्ये विपरीतेयं क्रिया व्यस्ते ॥२॥
___ पूर्वार्धोद्देशकः दिवसैनिभिः सपादैर्योजनषट्कं चतुर्थभागोनम् । गच्छति यः पुरुषोऽसौ दिनयुतवर्षेण किं कथय ।।३।। व्यर्धाष्टाभिरहोभिः क्रोशाष्टांशं स्वपञ्चमं याति । पङ्गुः सपञ्चभागैर्वत्रिभिरत्र किं हि ॥४॥ अङ्गुलचतुर्थभागं प्रयाति कीटो दिनाष्टभागेन । मेरोर्मूलाच्छिखरं कतिभिरोहोभिः समाप्नोति ॥५॥ १ P, K और M में स्व के लिये स पाठ है ।
५. त्रैराशिकव्यवहार तीनों लोकों के बन्धु तथा सूर्य के समान केवल ज्ञान के धारी श्री वर्द्धमान को नमस्कार है जिन्होंने समस्त कर्म (मल ) को निर्धूत कर दिया है । ॥१॥
इसके पश्चात्, हम त्रैराशिक नामक चतुर्थ व्यवहार का प्रतिपादन करेंगे। त्रैराशिक सम्बन्धी नियम
यहाँ त्रैराशिक नियम में, फल को इच्छा द्वारा गुणित कर प्रमाण द्वारा विभाजित करने से इष्ट उत्तर प्राप्त होता है, जब कि इच्छा और प्रमाण समान ( अनुक्रम direct अनुपात में ) होते हैं । जब यह अनुपात प्रतिलोम ( inverse ) होता है तब यह गुणन तथा भाग की क्रिया विपरीत हो जाती है ( ताकि भाग की जगह गुणन हो और गुणन के स्थान में भाग हो)। ॥२॥
पूर्वार्ध, अनुक्रम त्रैराशिक पर उदाहरणार्थ प्रश्न वह मनुष्य जो ३१ दिन में ५३ योजन जाता है, १ वर्ष और १ दिन में कितनी दूर जाता है ? ॥३॥ एक लंगड़ा मनुष्य ७१ दिन में एक क्रोश का है तथा उसका भाग चलता है । बतलाओ वह
ह? ॥४॥ एक कीड़ा दिन में 2 अंगुल चलता है । बतलाओ कि वह मेरुपर्वत की तली से उसके शिखर पर कब पहुँचेगा ? ॥५॥ वह मनुष्य जो ३३ दिन में 3 कार्षा
(२) प्रमाण और फल के द्वारा अर्घ ( rate) प्राप्त होती है। फल, इष्ट उत्तर के समान राशि होती है और प्रमाण, इच्छा के समान होता है । 'इच्छा' वह राशि है जिसके विषय में, किसी अर्घ (दर) से, कोई वस्तु निकालना होती है। जैसे कि गाथा ३ के प्रश्न में ३ दिन प्रमाण है, ५१ योजन फल है, और १ वर्ष १ दिन इच्छा है।
(५) मेरु पर्वत की ऊँचाई ९९,००० योजन अथवा ७६,०३२,०००,००० अंगुल मानी जाती है।
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