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________________ गणितसारसंग्रह [३.१२७ रूपभागापवाह उद्देशका त्र्यष्टचतुर्दशकर्षाः पादार्धद्वादशांशषष्ठोनाः। सवनाय नरैर्दत्तास्तीर्थकृतां तद्युतौ किं स्यात् ॥१२॥ त्रिगुणपाददलत्रिहताष्टमैविरहिता नव सप्त नव क्रमात् । प्रिय विशोध्य चतुर्गुणषट्कतः कथय शेषधनप्रमितिं द्रुतम् ॥१२८॥ भागभागापवाह उद्देशक: द्विगुणितपञ्चमनवमत्र्यंशाष्टांशद्विसप्तमान् क्रमशः। -- स्वषडंशपादचरणज्यशाष्टमवर्जितान् समस्य वद ॥१२९॥ षट्सप्तांशः स्वषष्ठाष्टमनवमदशांशैवियुक्तः पणस्य स्यात्पश्चद्वादशांशः स्वकचरणतृतीयांशपश्चांशकोनः। स्वद्वित्र्यंशद्विपञ्चांशकदलवियुतः पञ्चषड्भागराशिर्द्विव्यंशोऽन्यः स्वपश्चाष्टमपरिरहितस्तत्समासे फलं किम् ॥१३०।। अधं व्यष्टमभागपादनवमैः स्वीयैर्विहीनं पुनः स्वैरष्टांशकसप्तमांशचरणैरूनं तृतीयांशकम् । अध्यर्धत्परिशोध्य सप्तममपि स्वाष्टांशषष्ठोनितं शेष ब्रूहि परिश्रमोऽस्ति यदि ते भागापवाहे सखे ॥१३॥ . अत्राग्राव्यक्तभागानय नसूत्रम्लब्धात्कल्पितभागारूपानीतापवाहफलभक्ताः। क्रमशः खण्डसमानास्तेऽज्ञातांशप्रमाणानि ।१३२॥ वियुत पूर्णाकों वाले भागापवाह भिन्नों पर प्रश्न ३, ८, ४ और १० कर्ष को, ३,१५ और कर्ष द्वारा हासित कर शेष कर्ष कुछ मनुष्यों द्वारा तीर्थंकरों के पूजन के लिये भेंट किये गये । इनका योग करने पर योगफल क्या होगा? ॥२७॥ हे मित्र ! मुझे शीघ्र बतलाओ कि और द्वारा हासित क्रमवार ९, . और ९ राशियों को ६x४ द्वारा घटाया जाने पर कितना शेष रहेगा ? ॥१२॥ वियुत भिन्नों वाले भागापवाह भिन्नों पर प्रश्न क्रमशः ... और द्वारा हासित ३,१... और ३ को क्रमवार जोड़ो और तब योगफल बतलाओ ॥ १२९ ॥ दिये गये पण में, अनुगामी स्व की , और राशियों को हासित करो, पुनः स्व की और राशियों द्वारा १३ को हासित करो, इसी तरह स्व की ३,३ और राशियों द्वारा को हासित करो और अन्य राशि ३ को स्व की संख्या द्वारा हासित करो। इ सभी परिणामों को जोड़कर फल बतलाओ ॥ १३० ॥ भागापवाह भिन्न के सम्बन्ध में, हे मित्र, यदि तुमने कष्ट किया है तो बतलाओ कि ११ में से निम्नलिखित राशियाँ घटाने पर क्या शेष रहेगा ? स्व के है. और भागों द्वारा हासित: इसी तरह स्व के और भागों द्वारा हासित; और इसी तरह स्व के है और भागों द्वारा हासित ॥ १३ ॥ दिये गये योग वाले प्रत्येक वियवित भिन्न में आरम्भ में रहनेवाले एक अज्ञात तत्व को निकालने के लिये नियम- जोकि संख्या में इष्ट विघटक तत्वों के तुल्य हैं ऐसे दिये गये योग के, मन से विपाटित भागों को, जब क्रमवार इन विघटक तत्वों सम्बन्धी वियुत राशि को मानने से प्राप्त परिणामी राशियों द्वारा विभाजित किया जाता है तो इछवियुत अज्ञात राशियों के मान प्राप्त होते हैं ॥१३२ ॥ (१३२ ) इस गाथा की रीति १२२वीं गाथा के समान है। ..
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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