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समटपणं
णियनामेणं जेणं, महप्पणा पुज्जसामि-दासेणं । सक्खं जयइ पयडिओ, दसणरयणं अणेगन्तो ॥१॥
असर
जिण-सुय - णिम्मलसोओ, सुरक्खिओ जेण सरिपवरेणं । लिहिऊणं सुत्ताणि य, अणेगवार अणेगाणि ॥२॥
तस्स महेसिवरस्स हि, सिस्स-पसिस्सक्कमेणःणग्गहिओ। गणितानुओगसत्थं , अप्पेइ सभत्ति मुणी 'कमलों ॥३॥
अनेकान्त दर्शन मणि-मण्डित विजित अक्ष-प्रतिपक्ष सकल । स्वामिदास अभिधा थी सार्थक गुरुवर को प्रणमन प्रतिपल । जिन प्रवचन श्रुत स्रोतस्विनी की अक्षर देह सुरम्य अमन्द । सुन्दर लिपि में लिख अनेकशः लगा दिये सुदृढ़ तटबन्ध ।
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उन महर्षि वर के शिष्यानुक्रम में मेरा है लघु स्थान । यह गणितानुयोग समर्पित करता भक्तियुत प्रणिधान ।
-मुनि 'कमल'
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