________________
४१८
५
लोक- प्रज्ञप्ति
तिर्यक् लोक : सूर्य से प्रकाशित पर्वत
एस णं दोच्चे छम्मासे,
एस णं दोच्चस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे, एस आइचे संब
एस णं आइच्चस्स संवच्छरस्स पज्जवसाणे, '
- सूरिय. पा. ६, सु. २७
सूरियेण पगारिया पन्यया
४. ५० - ता कि ते सूरियं वरइ ? आहिएत्ति वएज्जा,
उ० – तत्थ खलु इमाओ वीसं पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - तत्थेगे एवमाहंसु
१. ता मंदरे णं पव्वए सूरियं वरइ, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहं
२. ता मेरु णं पव्वए सूरियं वरइ एगे एवमाहंसु,
३ - १६. एवं एएवं अभिलावे णं णेयव्वं तहेव-जाव- 13
एगे पुण एवमाहंसु -
२०. ता पव्वयराये णं पव्वए सूरियं वरइ, एगे एवमाहंसु
वयं पुण एवं वदामो
ता मंदरे णं पव्वए सूरियं वरइ, एवं वि पवुच्चइ तहेव - जाव (१-२० सूरिय. पा. ५, सु. २६ को देखें ता पव्वयराये णं पव्वए सूरियं वरइ, एवं वि (क) ता जे णं पोग्गला सूरियस्स लेसं फुसंति, ते णं पुग्गला सूरियं वरयति
पवच्चइ
(ख) अदिट्ठा वि णं पोग्गला सूरियं वरयंति,
(ग) चरिमले संतरगया वि गं पोग्गला सूरियं वरयंति, - सूरिय. पा. ७, सु० २८
ये दूसरे छः मास ( उत्तरायण के ) हैं ।
ये दूसरे छः मास का पर्यवसान है । यह आदित्य संवत्सर है।
यह आदित्य संवत्सर का पर्यवसान है ।
सूत्र १००३ - १००४
सूर्य से प्रकाशित पर्वत
४. प्र०
३०
सूर्य से कौनसा (पर्वत) प्रकाशित होता है ? कहें।" इस सम्बन्ध में वे बीस प्रतिपत्तियां (मान्यतायें कही गई है, यथा- इनमें से एक (मान्यता वालों) ने ऐसा कहा है(१) सूर्य से 'मन्दर पर्वत' प्रकाशित होता है । एक मान्यता वालों ने फिर ऐसा कहा है
(२) सूर्य से मेरु पर्वत प्रकाशित होता है।
(३-१६ ) इस प्रकार इन अभिलापों से पूर्ववत् - यावत्जानना चाहिए ।
एक (मान्यता वालों ने फिर ऐसा कहा है
(२०) सूर्य से "पर्वतराज" प्रकाशित होता है।
हम फिर इस प्रकार कहते हैं
सूर्य से " मन्दर पर्वत" भी प्रकाशित कहा जाता है— यावत् " पर्वतराज" भी प्रकाशित कहा जाता है ।
(क) जितने पुद्गल सूर्य के प्रकाश का स्पर्श करते हैं उतने ही पुद्गलों को सूर्य प्रकाशित करता है।
(ख) अदृष्ट ( अति सूक्ष्म) पुदगलों को भी सूर्य प्रकाशित करता है ।
(ग) मन्दर पर्वत के चारों ओर के ऊपरी भाग के पुद्गलों को भी सूर्य प्रकाशित करता है ।
१
चन्द. पा. ६ सु. २७ ।
२
प्र० - सूर्य को ( स्व प्रकाश रूप में) कौन (पर्वत) वरण (स्वीकार ) करता है ?
उ०- सूर्य को "मन्दर पर्वत " ( स्व प्रकाश रूप में) वरण (स्वीकार ) करता है ।
ऊपर लिखे इन बीस सूत्रों का शब्दार्थ इस प्रकार होता है, यहाँ अनुवाद में केवल फलितार्थ ही दिया हैं ।
३ " सूरियस्स लेस्सा पडिघायगा पव्वया" इस शीर्षक के अन्तर्गत सूर्य प्रा. ५, सु. २६ में बीस प्रतिपत्तियों के अनुसार सूर्य की लेश्या को प्रतित करने वाले बीस पर्वतों के नाम गिनाये हैं यहाँ भी उसी के अनुसार मूल पाठ एवं अनुवाद के सभी आलापक कहने चाहिए।
४ ऊपर के टिप्पण में सूचित शीर्षक के अन्तर्गत सूर्य. पा. ५, सु. २६ के अनुसार सूर्य प्रज्ञप्ति के संकलन कर्ता ने यहाँ भी मन्दर पर्वत के बीस नामों को पर्यायवाची मानकर समन्वय कर लिया हैं ।
चन्द. पा. ७ सु. २८ ।