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सूत्र ३९२
तिर्यक् लोक : यमक देवों को राजधानियाँ
गणितानुयोग
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जमियाणं रायहाणीणं चउद्दिसि पंच पंच जोयणसए यमिका राजधानियों की चारों दिशाओं में पाँच-पाँच सौ अबाहाए चत्तारि वणसंडा पण्णता, तं जहा-१ असोग- योजन पर चार वनखण्ड हैं, यथा-(१) अशोकवन, (२) सप्तपर्णवणे, २ सत्तिवण्णवणे, ३ चंपगवणे, ४ चूअवणे। वन, (३) चंपकवन, (४) चूतवन । ते णं वणसंडा साइरेगाइं बारसजोयणसहस्साई ये वन किंचित् अधिक बारह हजार योजन लम्बे, पांच सौ आयामेणं, पंच जोथणसयाई विक्ख भेण । योजन चौड़े हैं। पत्तेयं पागारपरिक्खित्ता किण्हा वणसंडवण्णो, इनमें से प्रत्येक प्रकार से घिरा है। वे कृष्ण हैं, इत्यादि भूमीओ, पासायवडेंसगा य भाणियब्वा । बनखण्ड की वरव्यता समझ लेनी चाहिए। भूमियों तथा प्रासादा
वतंसकों का भी काथन कर लेना चाहिए। जमिगाणं रायहाणीणं अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे यमिका राजधानियों के अन्दर अत्यन्त सम एवं रमणीय पण्णत्ते, वण्णगो त्ति ।
भूमिभाग है, उसका वर्णन समझ लेना चाहिए। तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेस- उन अतिसमावं रमणीय भुभागों के बीचों बीच दो अवतारिभाए-एत्थ णं दुवे उवयारियालयणा पण्णत्ता। कालयन कहे हैं । बारस जोअणसयाई आयाम विक्खं भेणं, तिप्णि जोयण- ये बारह सौ योजन लम्बे-चौड़े हैं, सैतीस सौ पिचानवें ३७६५ सहस्साई सत्त य पंचाणउए जोयणसए परिक्खेवेण, योजन की परिधि बाले, आधा कोस की मोटाई वाले, सर्वात्मना अद्धकोसं च बाहल्लेणं, सव्वजंबूणयामया अच्छा। जम्बूनदगय और स्वच्छ हैं। पत्तेयं पत्तेयं पउमवरवेइया परिक्खित्ता, पत्तेयं पत्तेयं (उनमें से) प्रत्येक पद्मवरवेदिका से घिरा है। प्रत्येक के वणसंडवण्णओ भाणियब्बो, तिसोबाणपडिरूवगा, वनखण्ड का वर्णन कह लेना चाहिए, तीन सोपान प्रतिरूपक, तोरणचउद्दिसि, भूमिभागा य भाणियवत्ति। तोरण, चारों ओर भूमिभाग भी कह लेने चाहिए। तस्स णं बहुमज्झदेसभाए-एत्थ गं एगे पासायव.सए उनके ठीक मध्य भाग में एक प्रासादावतंसक कहा है। पण्णत्ते। बाट्टि जोयणाई अद्धजोयणं च उद्धं उच्चत्तेणं, इक्क- वह ६२॥ योजन ऊंचा एवं ३१॥ योजन लम्बा-चौड़ा है। तीसं जोयणाई कोसं च आयाम-विखंभेणं, वण्णओ, उसके छत, भूविभाग तथा सपरिवार सिंहासन का वर्णन कह उल्लोआ, भूमिभागा, सीहासणा सपरिवारा। लेना चाहिए। एवं पासायपंतीओ-एत्थ पडमापंती-तेणं पासाय- इसी प्रकार (मूल प्रासादावतंसक के चारों ओर अन्य) वडेंसया-एक्कतीसं जोयणाई कोसं च उद्धं उच्चतेणं, प्रासादों को पंक्तियाँ हैं। उनमें प्रथम पंक्ति के प्रासादों की ऊंचाई साइरेगाइं अद्धसोलसजोयणाई आयाम-विक्खंभेणं । ३१॥ योजन की, लम्बाई-चौड़ाई किंचित् अधिक साढ़े पन्द्रह
१५।। योजन की है। बिइअपासायपंती-ते णं पासायवडेंसया साइरेगाई दूसरी पंक्ति के प्रासादों की ऊँचाई कुछ अधिक साढ़े पन्द्रह अद्धसोलस जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं, साइरेगाइ अद्ध- योजन की है तथा लम्बाई-चौड़ाई साढ़े सात योजन से कुछ टुमाईजोयणाई आयाम-विक्खंभेणं।
अधिक है। तइअ पासायपंती-ते णं पासायव.सया साइरेगाइ तीसरी पंक्ति के प्रासादों की ऊँचाई कुछ अधिक साढ़े सात अट्ठमाई जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं, साइरेगाइ अद्भुट्ठ- योजन की तथा लम्बाई-चौड़ाई कुछ अधिक साढ़े तीन योजन की जोयणाइ आयाम-विक्खंभेणं, वण्णओ सीहासणा है । इनका वर्णन समझ लेना चाहिए । वहाँ सपरिवार सपरिवारा।
सिंहासन हैं। तेसि णं मूलपासायडिसयाणं उत्तर-पुरत्थिमे दिसि- उन मूल प्रासादावतंसकों के उत्तर-पूर्व दिक्कोण में यमक भाए-एत्थ णं जमगाणं देवागं सहाओ सुहम्माओ देवों की सुधर्मा सभाएं हैं । पण्णत्ताओ। अद्धतेरस जोयणाई आयामेणं, छ सकोसाई जोयणाइ वे साड़े बारह योजन लम्बी, सवा छह योजन विस्तृत और