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________________ १२ लोक-प्रज्ञप्ति लोक सूत्र २४-२७ तए णं तस्स दारगस्स आउए पहीणे भवति, णो चेव णं जाव संपाउणंति । तए णं तस्स दारगस्स अट्टि मिजा पहीणा भवंति, णो चेव णं ते देवा लोगंत संपाउणंति । तए णं तस्स दारगस्स आसत्तमे वि कुलवंसे पहीणे भवति, जो चेव णं ते देवा लोगंतं संपाउणंति । तए णं तस्स दारगस्स नाम-गोत्ते वि पहोणे भवति, नो चेव णं ते देवा लोगंतं संपाउणंति । प० तेसि णं भंते ! देवाणं कि गए बहए, अगए बहए? उस बालक की आयु क्षीण हुई-फिर भी यावत् वे देव लोक का अन्त न पा सके । उस बालक की अस्थि, मज्जा विनष्ट हो गई-फिर भी वे देव लोक का अन्त न पा सके । उस बालक की सात पीढ़ियों के बाद उसका कुल-वंश नष्ट हो गया-फिर भी वे देव लोक का अन्त न पा सके । उस बालक के नाम-गोत्र भी लुप्त हो गये-फिर भी वे देव लोक का अन्त न पा सके । प्र० हे भगवन् ! उन देवों का उल्लंधित क्षेत्र अधिक है या अनुल्लंधित क्षेत्र अधिक है ? उ० हे गौतम ! उल्लंधित क्षेत्र अधिक है, अनुल्लंधित क्षेत्र कम । अनुल्लंधित क्षेत्र उल्लंधित क्षेत्र का असंख्यातवाँ भाग है और उल्लंधित क्षेत्र अनुल्लंधित क्षेत्र से असंख्यातगुण है। हे गौतम ! लोक इतना महान् कहा गया है। उ० गोयमा ! गए बहुए, नो अगए बहुए, गयाओ से अगए असंखेज्जाइमागे, अगयाओ से गए असंखेज्जगुणे। लोए णं गोयमा ! एमहालए पन्नत्ते । -भग० स० ११, उ० १०, सु० २६ । लोगस्स आयाम-मज्झभागो लोक का आयाम-मध्य भाग २५: प० कहि णं भंते ! लोगस्स आयाम-मज्झे पन्नत्ते ? २५ : प्र. हे भगवन् ! लोक का आयाम-मध्य (लम्बाई के बीच का भाग) कहाँ कहागया है ? उ. गोयमा ! इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए ओवासंतरस्स उ. हे गौतम ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के अवकाशान्तर का असंखेज्जति भाग ओगाहित्ता-एत्थ णं लोगस्स आयाम- असंख्यातवाँ भाग उल्लंघन करने पर-लोक का आयाम-मध्य मज्झे पण्णत्ते। कहा गया है। -भग० स० १३, उ० ४, सु०१२। लोगस्स समभागो, संखित्तभागोय २६ : प० [१] कहि णं भंते ! लोए बहुसमे ? [२] कहि णं भंते ! लोए सव्वविग्गहिए पण्णत्ते? उ० [१] गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उवरिम- हेटिलेसु खुड्डग-पयरेसु एत्थ णं लोए बहुसमे। [२] एत्य णं लोए सव्वविग्गहिए पण्णत्ते । - भग० स०१३, उ०४, सु०६७ । लोक का समभाग और संक्षिप्त भाग २६ : प्र० [१] भगवन् ! लोक का अधिक समभाग और [२] लोक का सर्वसंक्षिप्तभाग कहाँ कहागया है ? उ० [१] गौतम ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के ऊपर से नीचे वाले क्षुद्र (लधु) प्रतरों में लोक का अधिक समभाग है और [२] यहीं पर लोक का सर्व संक्षिप्तभाग कहागया है। लोगस्स वक्कभागो २७ : १० कहि गं भंते ! विग्गहविग्गहिए लोए पन्नत्ते ? उ० गोयमा ! विग्गहकंडए-एत्थ णं विग्गह-विग्गहिएलोए पन्नते। --भग० स० १३, उ०४, सु०६८ । लोक का वक्रभाग २७ : प्र० हे भगवन् ! लोक का वक्रभाग कहाँ कहागया है ? उ० हे गौतम ! जहाँ विग्रह-कंडक है-वहीं पर लोक का वक्रभाग कहागया है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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