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________________ गणितानुयोग का दितीय संस्करण और उसका संकलनः- [विशेष ज्ञातव्य] जैनागमों में भूगोल-खगोल एवं अन्तरिक्ष सम्बन्धी जितने पाठ हैं उन सबका इसमें संकलन का प्रयत्न किया गया है। प्रथम संस्करण के क्रम में और इस द्वितीय संस्करण के क्रम में सामान्य-सा अन्तर किया गया है। प्रथम संस्करण में सर्व प्रथम अलोक का वर्णन, बाद में लोक का वर्णन और अन्त में परिशिष्ट थे। द्वितीय संस्करण में सर्वप्रथम लोक का वर्णन, बाद में अलोक का वर्णन और अन्त में लोकालोक के कतिपय सूत्र तथा कुछ परिशिष्ट हैं। सभी परिशिष्ट श्री विनयमुनिजी ने व्यवस्थित किये हैं। शब्द-कोश श्रीयुत श्रीचन्दजी सुराना ने सम्पन्न किया है। प्रथम सस्करण में समस्त आगम पाठों का अनुवाद डा० श्री मोहनलाल मेहता ने किया था। द्वितीय संस्करण में भी प्रायः डा० मेहता का ही अनुवाद रखा गया है किन्तु वर्गीकरण के अनुसार कहीं-कहीं परिवर्तन-परिवर्धन-संशोधन भी किया गया है। सम्पादन पच्दति १. भूगोल-खगोल अन्तरिक्ष सम्बन्धी आगम पाठ जो भाव एवं भाषा में साम्य रखते हैं, उनमें से एक आगम पाठ मूल संकलन में लिया गया है । शेष आगम पाठों के स्थल निर्देश टिप्पण में अंकित किये गये हैं। २. जैनागमों में भूगोल-खगोल एवं अन्तरिक्ष सम्बन्धी कुछ पाठ ऐसे हैं जिनमें एक सूत्र अल्प संख्या सूचक होता है और दूसरा सूत्र बह संख्या सूचक होता है तो उनमें से बहु संख्या सूचक एक सूत्र मूल संकलन में लिया है। शेष अल्प संख्या सूचक सभी सूत्रों के स्थल निर्देश टिप्पण में दिये हैं । उदाहरण के लिए देखिए पृष्ठ १३, सूत्र २६ के टिप्पण। पृष्ठ १४ पर सूत्र ३० बहु संख्या सूचक सूत्र से भिन्न प्रकार का है। अतः मूल संकलन में लिया गया है। ३. संकलित आगम पाठों पर जहाँ १,२ आदि अंक दिए हैं वे सब टिप्पण के अंक हैं। । जितने अंश पर अंक हैं उतने ही अंश से साम्य वाले आगम पाठों के स्थल निर्देश टिप्पण में दिये गये हैं। ४. प्रस्तुत संकलन में विषय वर्गीकरण की पद्धति प्रथम संस्करण से भिन्न प्रकार की है। इसमें प्राकृतिक स्थिति का क्रम लिया है। सर्व प्रथम अधोलोक, मध्यलोक और ऊर्ध्वलोक, अधोलोक में नरक, भवन आदि मध्यलोक में द्वीप, क्षेत्र, पर्वत, कूट, प्रपात, द्रह, नदियां, समुद्र आदि । ऊपर ज्योतिष चक्र के चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, तारा आदि। ऊवलोक में कल्प, अनुत्तर विमान, ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी आदि। ५. प्रथम संस्करण में आगमपाठों का मूल ऊपर और नीचे हिन्दी अनुवाद था। द्वितीय संस्करण में प्रत्येक पृष्ठ पर दो कालम हैं। एक में मूलपाठ और दूसरे कालम में हिन्दी अनुवाद है। मूल पाठ के सामने हिन्दी अनुवाद है इसलिए मूलपाठ के भाव को समझने में पाठक को सुविधा रहेगी। ६. मूल हिन्दी अनुवाद शब्दानुलक्षी है अतः गणित सम्बन्धी प्रक्रिया इसमें नहीं दी गई है। जो जिज्ञासू गणित की प्रक्रियायें जानना चाहें वे सूर्यप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति टीका तथा क्षेत्र समास, लोकप्रकाश आदि ग्रन्थ देखें। ७. जैनागमों से सम्बन्धित विषयों पर शोध निबन्ध लिखने वाले अभीष्ट विषय की जानकारी शीघ्र प्राप्त कर सकें- इसके लिए मूल पाठ पर प्राकृत के शीर्षक और हिन्दी अनुवाद पर हिन्दी में शीर्षक दिये गए हैं।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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