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________________ पछाचारप्रकीर्णक (५३) सुविनीत शिष्य क्षमाशील होता है, इन्द्रियों को जीतने वाला होता है, स्व-पर की रक्षा करने वाला होता है और वैराग्य मार्ग में लीन रहता है। वह दस प्रकार की समाचारी का पालन करता है तथा आवश्यक क्रियाओं में संयम पूर्वक लगा रहता है। (५४.५५) या पुत्पन्त काडोर, कर्क, अप्रिय, निष्ठुर तथा क्रूर वचनों के द्वारा उपालम्भ देकर शिष्य को गच्छ से बाहर निकाल दे तो भी जो शिष्य द्वेष नहीं करते, प्राण कण्ठ में आ जाये अर्थात् मृत्यु समीप आ जाये तो भी निन्दा नहीं करते, अपयश नहीं फैलाते, कोई अकार्य अर्थात् निन्दित कर्म नहीं करते तथा जिनदेव-प्रणीत सिद्धान्त की आलोचना नहीं करते, उन शिष्यों का गच्छ ही वास्तव में गच्छ है । (५६) जहाँ गुरु के द्वारा अत्यन्त कठोर, अप्रिय, निष्ठुर एवं कर वचनों के द्वारा जो भी कार्य-अकार्य कहा जाता है, शिष्य 'तहत्ति' ऐसा कहकर उसे स्वीकार करता है, हे गौतम ! उस गच्छ को ही वास्तव में गच्छ कहते हैं। (५७-५८) सुविनीत शिष्य न केवल वस्त्र, पात्र आदि के प्रति ममता से रहित होता है अपितु वह शरीर के प्रति भी अनासक्त होता है। वह आहार मिलने पर अथवा नहीं मिलने पर उसके बयालीस दोषों को टालने में समर्थ होता है। वह न रूप तथा रस के लिए, न सौन्दर्य के लिए और न ही अहंकार के लिए अपितु गाड़ी की धुरा के उपांग के समान चारित्र के भार को वहन करने के लिए ही (शुद्ध एवं निर्दोष आहार) ग्रहण करता है। (५९) साध उपरोक्त छह कारणों से आहार ग्रहण करता है (१) वेदना शान्त करने के लिए, (२) वैयावृत्य अर्थात गुरु की सेवा करने के लिए, (३) ईर्यासमिति का सम्यक रूप से पालन करने के लिए, (४) संयम-निर्वाह के लिए, (५) जीवन-निर्वाह के लिए तथा (६) धर्म-ध्यान के लिए । (६०) जहाँ छोटे-बड़े का ध्यान रखा जाता हो, बड़ों को प्रणाम तथा बहुमान दिया जाता हो, यहाँ तक कि जो एक दिन भी (दीक्षा पर्याय में) बड़ा हो, उसकी अवज्ञा नहीं की जाती हो, हे गौतम! वही गच्छ वास्तव में गच्छ है ।
SR No.090171
Book TitleAgam 30 Prakirnak 07 Gacchachar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year
Total Pages68
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Ethics
File Size1 MB
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