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________________ गच्छाचार प्रकोणक ૧૧ (३५) जो साधक आत्मा सन्मार्ग में आरुढ हैं उनके प्रति वात्सल्यभाव रखना चाहिए तथा उनकी औषध आदि से स्वयं सेवा करनी चाहिए और दूसरों से करवानी भी चाहिए । ( ३६ ) ऐसे कई महापुरुष भूतकाल में हुए हैं, वर्तमान में हैं और भविष्य में होंगे, जो अपना सम्पूर्ण जीवन अपने एकमात्र लक्ष्य लोकमंगल ( लोकहित ) हेतु व्यतीत करते हैं। ऐसे महापुरुषों के चरण युगल में तीनों लोकों के प्राणी नतमस्तक होते हैं । ( ३७ ) हे गौतम! ऐसे कई आचार्य अतीतकाल में हुए हैं और भविष्य में होंगे, जिनका व्यक्तित्व स्मरण करने से पापकर्मों का प्रायश्चित्त हो जाता है । (३८) जिसप्रकार संसार में भव्य ( नौकर ) एवं लव आदि बाहन सम्यक् देख-भाल या नियन्त्रण के अभाव में स्वर ( स्वच्छंद ) हो जाते हैं उसी प्रकार प्रतिप्रश्न, प्रायश्चित्त तथा प्रेरणा के बिना शिष्य भी स्वच्छंद हो जाते हैं। इसलिए गुरु का भय सदैव हो अपेक्षित है । (३९) जो आचार्य आलस्य, प्रमाद तथा उसी प्रकार के दोष के कारण अपने शिष्यों को प्रेरणा नहीं देते हैं, जिन आज्ञा की विराधना होती है । अन्य किसी उनके द्वारा (४०) हे सौम्य शिष्य ! यहाँ तक आचार्य के लक्षणों का यह संक्षिप्त वर्णन मेरे द्वारा किया गया है । हे धर्यवान् शिष्य ! अब तुम मुझसे संक्षेप में गच्छ के लक्षणों को सुनो। ( ४१-१०६ साधु स्वरूप वर्णन अधिकार ) ( ४१ ) जो शास्त्रों का सम्यक् अर्थ रखने वाले, संसार से मुक्त होने की इच्छा रखने वाले, आलस्य रहित व्रतों का दृढ़तापूर्वक पालन करने वाले, सदैव अस्खलित चारित्र वाले तथा राग-द्वेष से मुक्त हैं, उन साधुओं का गुच्छ ही वास्तव में गच्छ है । (४२) ऐसे छद्मस्थ या केवली के सान्निध्य में विहार करना चाहिए. जिन्होंने आठ प्रकार के गवं के स्थानों (अर्थात् अहंकार) का नाश कर लिया हो, कषायों को शांत कर लिया हो तथा इन्द्रियों को वश में कर लिया हो ।
SR No.090171
Book TitleAgam 30 Prakirnak 07 Gacchachar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year
Total Pages68
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Ethics
File Size1 MB
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