SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गच्छाचार प्रकीर्णक (6) गमछ के आचार्य मेढी तया सन्म के समान आरमूल सफा उत्तम दृष्टि (सम्यक दृष्टि) वाले हों, इसकी परीक्षा अवश्य करनी चाहिए। (९) हे भगवन् ! छअस्प मुनि यह कैसे जानें कि कोन आचार्य उन्मार्ग में प्रस्थित हैं ? हे मुनि ! इस बारे में तुम मुझसे सुनो। (१०-११) स्वच्छंदाचारी, दुष्ट स्वभाव वाले, जीव हिंसा में प्रवृत्त, शय्या आदि में आसक्त, अप काय की हिंसा करने वाले, मूल-उत्तरगणों से भ्रष्ट, समाचारी का उल्लंघन करने वाले तथा आलोचना नहीं करने वाले और नित्य धिकथा कहने वाले आचार्य उन्मार्ग गामी हैं। (१२) छत्तीस गुणों से युक्त व्यवहार कुशल आचार्य के लिए भी यही श्रेष्ठ है कि वह दूसरों को साक्षी से अपने दोषों की आलोचना अवश्य करें। (१३) जिस प्रकार अति कुशल वैद्य भी अपनी बीमारी को किसी अन्य वैद्य को बतलाता है और उनके निर्देशानुसार चिकित्सा करता है उसी प्रकार कुशल आचार्य भी अपने दोषों को अन्य आचार्य को कहकर उनके निर्देशानुसार आलोचनादि करके अपनी शुद्धि करते हैं 1 (१४) आचार्य आगम के अर्थ को देखकर तथा देश, काल और परि स्थिति को जानते हुए साधु-समूह के लिए वस्त्र, पात्र और उपाश्रय आदि ग्रहण करें। (१५-१६) जो आचार्य (वस्त्र, पात्र आदि) उपधि को विधिपूर्वक ग्रहण नहीं करते हैं, साधु-साध्वियों को दीक्षा तो दे देते हैं किन्तु उनसे समाचारी का पालन नहीं करवाते हैं, नवदीक्षित शिष्यों को लाड़ प्यार से रखते हैं किन्तु उन्हें सन्मार्ग पर स्थित नहीं करते, उन आचार्य को (तुम) शत्रु जानो।
SR No.090171
Book TitleAgam 30 Prakirnak 07 Gacchachar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year
Total Pages68
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Ethics
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy