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इसि-भासियाई गुजराती भाषान्तर:
સ્વભાવથી ભાષિત આત્મા માટે નિર્જન જંગલ અને ચૂનું જંગલ અને ધનથી પૂર્ણ બંગલે એકસરખાંજ છે. તે બધી વસ્તુઓ તેને માટે તે જ રીતે ધર્મધ્યાનના નિમિત્ત થાય છે જેમ કે સશલ્ય અંતઃકરણના માણસ માટે આર્તધ્યાન,
जिसकी आमा खभाव से भाधित है, मागम की भाषा में जिस निसर्ग चिसंपन कहा जाता है वह सूने वन के एकान्त कोने में रहे या स्वर्ण प्रासादों में रहे वह सभी स्थलों पर आत्म-साधना में लीन हो सकता है। जिसने मन को साध लिया है भौतिक राग के बन्धन उसे चांध नहीं सकते । उसके लिये वन क्या और प्रासाद क्या? उसके लिये मिट्टी का पात्र भी खर्ण-पात्र है और वर्ण-पात्र भी मिट्टी से अधिक मुल्यवान् नहीं है। गीता की भाषा में यह स्थित-प्रज्ञता है। वह सब में रहकर सब से परे रहता है। वह समस्त विचारों से दूर रहकर अपने द्वारा अपने आप में संतुष्ट रहता है।'
जिसके मन में वासना की दाह अवशेष है वह धन में पहुंचेगा तब भी वासना के प्रसाधन ही जुटाएगा। ये वन और धन उसके लिये आर्तध्यान के हेतु बनेंगे। स्थान का भी महत्व है पर वह साधना की प्राथमिक भूमिका तक सीमित है, अक्षाय की भूमिका पर पहुंचने के बाद साधक कहीं भी रहे उसके चित्त में विकृति प्रवेश नहीं पा सकेगी।
टीका:-सुभाचेन भावितास्मानः शुन्यमिव दृश्यतेऽरपयं प्रामे वा धनं सर्वमतद्धि जगद धर्मध्यानाय तस्य भवति यथा शल्यवतश्चित्ते शक्ष्यमार्तध्यानाय ।
अर्थात् सुन्दर भावों से भाक्ति आत्माएं आकाश वत् निर्लिप्त रहती हैं 1 वम धाम और धन सारा विश्व उसके लिये धर्म ध्यान हेतु होता है, जैसे कि सशल्यचित्त वाले के लिये आर्तध्यान का।
दुहरूवा दुरंतस्स णाणावत्था वसुंधरा ।
कम्मा-दाणाय सव्वं पि कामचित्ते व कामिणो ॥ १६॥ अर्थ:-नाना रूप में स्थित सुन्धरा दुरन्त व्यक्ति के लिये दुःख रुप और कर्मादान की हेतु है। जैसे कामी व्यक्ति के लिये सारी सृष्टि कामोसादक होती है। गुजराती भाषान्तर :
નાના રૂપમાં રહેલી આ પૃથ્વી દુરન્ત વ્યક્તિને માટે દુઃખરૂપી અને કર્માદાનમાં કારણ બને છે. જેમ કે કામી, વ્યક્તિને માટે તો આખું વિશ્વજ કામોત્પાદક બને છે,
विचित्रताओं से भरी विशाल सृष्टि में माधुर्य है किन्तु जिसका मन-वेदना से पीडित है उसके लिये दुःखद ही हैं । ज्वरग्रस्त व्यक्ति के लिये शीतल सुरमित पवन भी कष्टप्रद ही है। सृष्टि न अपने आपमें सुख रूप है, न दुःख रूप। जिस दृष्टि को लेकर चलेंगे उसी रूप ढलती हुई दिखाई देगी। चकोर के लिये चन्द्र माधुर्य का आगार है तो चकवे के लिये चन्द्र की बञ्चल चन्द्रिका भी दुःख की सृष्टि करती है। दृष्टि का भेद है। दृष्टि बदलिये तो सृष्टि बदल जाएगी। अहेतर्षि इसी सत्य का उद्घाटन कर रहे हैं । वेदना से छटपटाते व्यक्ति के सारी सृष्टि उसी प्रकार दुःख का संदेश देती है जैसे कि कामी के लिये सारी सृष्टि काम की प्रेरणा देती है।
टीकाः- दुरन्तस्य तु चिक्ते नानावस्था वसुन्धरा-पृथिवी दुःखरूपा सर्वच कर्मादानाय भवति, यथा कामिनश्चित्ते कामः । गताः ।
सम्मतं च इयं चेव णिणिदाणो य जो दमो।
तको जोगो य सम्वी वि सब्वकम्मखयंकरो ॥१७॥ अर्थः- सम्यक्त्व, श्या, निदान-रहित संयम और उससे होनेवाला समस्त (शुभ) योग सभी कर्मों को क्षय करने वाला है। गुजराती भाषान्तर:
સમ્યકત્વ, દયા, નિદાન રહિત સંયમ અને તેનાથી થાય એવા બધા (ગુણ) ગ બધાં કર્મોને નાશ કરે છે. १. प्रजाति यदा कामान् सर्वान् पाथै ! मनोगतान् । आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रशस्तदोच्यते ।। गीता.