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के कारण पुरुषाकार भी है। परन्तु है पृथक पृथक हो । तथा च प्रत्येक सूक्त कर्ताने अपने अपने अभिष्ट देवताको सर्वश्रेष्ठ देव माना है तथा अन्य देवताओंको निकृष्ट सिद्ध किया है । यथाअग्नि चैं देवाना मयमो विष्णुः परमः ।।
शत० १४ । १।१ । ५ अग्नि निम्न देष है और विष्णु परम देव हैं। उसी में सब अन्य देव हैं। इसी प्रकार अग्नि, इन्द्र आदिके स्तुति परक सूक्तों में अग्नि श्रादिको अन्य सब देवताओं में श्रेष्ठ ठहराया है।
अभिप्राय यह है कि देवता पृथक पृथक भौतिक शक्तियाँ हैं। यही नहीं अपितु इन देवताओंकी दुर्बुद्धियोंका भी वर्णन है. यथा(माते अस्मान दुर्मतयः) ऋ० ७। १ २२
अर्थ-हे. अग्नि देव श्रापकी दुर्मतियां (भृमान-चिन ) भ्रम से भी हमाग नाश न करें ?
इसी प्रकार रुद्रसे प्रार्थना की गई है किमानो महान्तमुत मानो अर्भकम् ।। ऋ० तथा इन्द्रसे भी प्रार्थना की गई है।
(मानोवधीरिन्द्र ।।) आदिअर्थात हे कद्र ! श्राप हमारे पिता आदिको तथा छोटे छोटे बालकोंको मन मारो। तथा हे इन्द्रदेव आप हमारा वध मत करो तथा हमारे प्रिय भोजनोंको मत चोर ? (श्मएडा मा) तथा हमारे अण्डाको भी मत चोर और चूरवावे ?