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________________ चाहते हैं कि आपने यह जो ऋत का अर्थ किया है वह किस आधार से किया है । वास्तविक बात तो यह है कि इस प्रकार के अर्थ करके ये लोग वेदों का गौरव बढ़ाना चाहते हैं परन्तु परिएाम जलदा निकल रहा है। अस्तु प्रकरण यह है कि ग्रह ऋन उस अपार बुद्धि में निवास करती है, जिसको ईश्वर कहते हैं। पहली बात तो यह है कि ईश्वर किसे कहते हैं यहीं अभी साध्य है । फिर उसकी अपार बुद्धि है या नहीं यह भी साध्य और ऋत एस में रहता है यह सीना का भूत का है और इस का अस्तित्व है या नहीं यही अभी तक साध्य है। तथा राष्ट्र के जो नियम है उनको राष्ट्रने निर्माण किया है, इस का प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि राष्ट्र जब चाहे उन नियमाम परिवर्तन कर सकता है यदि किन्हीं नियमों को ईश्वर ने बनाया है, तो प्रश्न उपस्थित होते हैं कि ये नियम कब बनाये और क्यों बनाये, और इन नियमों में वह परिवर्तन क्यों नहीं करता। यदि कहो कि बनाये नहीं उसका स्वभाव है. तो आपके कथनानुसार ही वह जड़ सिद्ध होता है। अतः ये सब बातें ईश्वरको सिद्ध नहीं कर सकती । प्रागे मापने (ऋतं च सत्य च) यह मन्त्र दिया है आपने ऋतके अर्थ तो वह विशाल नियम जो समस्त विश्व पर शासन करता है। कर दिये । तथा सत्य के अर्थ श्रापने किये कि "सत्य वह शक्ति है जो उस निगमके आधीन रहने के लिये संसार की प्रत्येक वस्तु तथा वदना को बाधित करती है। जिस प्रकार सांसारिक दरवारा में पागधीश निश्चय करता है कि अमुक मनुष्य को यह दण्ड दिया जाये और पुलिस उसको दण्ड देती है, इसी प्रकार न को रखने वाली बुद्धि का नाम अभिद्ध" है और सत्य को रखने वाली शक्ति का नाम "तपस" है । यह बुद्धि तथा शक्ति सांसारिक न्यायाधीश तथा पुलिस के
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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