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________________ ( ७८१ ) इच्छापूर्वक कर्ता त्वम् प्रभुत्वमस्वरूपता । निमित्त कारणेष्वेव नोपादानेषु कहिं जित || अर्थात् इच्छ पूर्वक, क्रिया करनाप्रभु (स्वामी) होना तथा कार्य के समान स्वरूप वाला न होना यह निमित्त कारण में ही होता है, उपादान कारण में ये बातें नहीं होती। आदि. निमित्त कारण के लिये नैयायिकों का कथन है कि : जिसका अपना स्वरूप ही कार्याकार्य हो उसको उपादान" कारण कहते हैं। जैसे घटका उपादान कारण मिट्टी है. न्याय शास्त्र की परिभाषा में इसीको "समवायि" कारण कहते हैं. यह उपादान कारण दो प्रकार का है, एक आरम्भक उपादान. दूसरा परिणामि उपादान बहुत से पदार्थ मिले हुये अवयव से एक कार्य बन जाने का नाम "आरम्भक" और उस कारणरूप पदार्थ का परिणामस्वरूप बदल कर कार्य का हो जाना " परिणामी उपादान कहा है. जैसे दूध से दधि आदि, मायाबादी तीसरा विपत्तिसे उपादान भी मानते हैं । अन्य में अन्य की प्रतीति आदि, और यह अविद्या का परिणाम तथा चेतन का विवर्त्त है विषन्त' वास्तव में स्वस्वरूप न त्यागने को कहते हैं और निमित्ति कारण उसको कहते हैं जो कार्याकार न होकर और ज्ञान इच्छा, यत्न वाला होकर कार्यको बनाये, जैसे जीवात्मा अपने शरीर के बाहर भीतर के यथाशक्ति कार्यों का कर्त्ता है। और जो उपादान कारण में सम्बन्धी होकर कार्यका * जनक हो उसको असमवायि" कारण कहते हैं. जैसे तन्तुओं का संयोग पटका असमवायि कारण है और जो उक्त तीन प्रकार के कारगा से भिन्न हो वह साधारण' कारण कहलाता है. जैसे कि घटादिकों की उत्पत्ति देश काल आकाशादि साधारण कारण हैं । :: 4
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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