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________________ ( ७६८ ) 'ई-- यदि भारत में पानी का मामीला ते श्राकाश पुष्प की तरह वह कभी उत्पन्न नहीं हो सकता। सन की उत्पत्ति होती है । उपादान का ही ग्रहण होता है, अर्थात शालि बीज़ ही शालिका उपादान कारण होता है. गेहूं श्रादि नहीं होते। सबसे सब वस्तुएं उत्पन्न नहीं होती. तिलासे ही नल निकलता है बालू यादि से नहीं, शक्तिमान कारण भी शक्य कार्य को ही जन्म देते हैं तथा कारण के होने पर ही कार्य होता है अतः इन पांच हेतुओं से ज्ञात होता है कि कारण में कार्य सदा विद्यमान रहता है । __ इसी प्रकार वेदान्त दर्शन के द्वितीय अध्यायमें श्री शङ्कराचार्य जी ने असत् कार्यवाद का बड़ी प्रवल युक्तियोंसे खंडन किया है। बृहदारण्यकोपनिषद् भाष्यमें आपने सत्कार्यवादका बहुत ही सुन्दर और तात्विक विवेचन किया है। आप लिखते हैं कि सर्व हि कारणं कार्य मुत्पादयत् पूर्वोत्पश्नस्थ कार्यस्य तिरोधानं कुर्वन् कार्यान्तरं मुत्पादयति । एकस्मिन् कारणे युगददनेक कार्य विरोधात्"आदि अर्थात् जब कारण एक कार्य को उत्पन्न करता है, तब वह दूसरे कार्य का तिरोधान कर देता है, उस कार्य को छोड़ देता है क्यों कि एक कारण में एक साथ अनेक कार्यों को व्यक्त करने का विरोध है किन्तु एक कार्य के तिरोहित हो जाने मात्र से कारणका नाश नहीं होता, कार्योका अर्थ है अभिव्यक्त होना अर्थात् ( ज्ञान का विषय होना ) अब विद्यमान घट सूर्य के प्रकाश में नहीं दीखता इससे सिद्ध है असन कार्य की कभी प्रतीति नहीं हो सकती। जब तक घटकी अभिव्यक्ति नहीं होती उस समय तक घट मिट्टी पर्याय में विद्यमान रहता है। अतः उत्पत्तिसे पूर्व घट आदि विद्यमान रहते हैं, किन्तु उनमें स्वरूप पर अाघरण होने के कारण उनको
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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