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________________ भ्रम मूलक है वस्तुतः इनका भी उपयोग है । इनसे शिकार को कम कष्ट पहुंचता है। आदि । पू० २२३ आगे आप लिखते हैं कि किसी मनुष्यकी मृत्युका ही दृप्रांत लीजिये। कल्पना कीजिये कि 'क' नामक एक मनुष्य मरता हूँ । यह एक छोटी सी घटना है, परन्तु इसी के द्वारा उसकी स्त्री को विधवा होनेका दण्ड मिलता है. उसके माता पिता को पुत्र हीन होने का. बच्चों को पितृहीन होने का और उनके शत्रुओं को शत्रु सखिल होनेका पुरस्कार मिलता है। पृ०.६० यह है इस प्रयोजन वाद का नंगा चित्र यदि लेखक महोदय के घर में डाकू या गुरखें श्राफर आपका माल लूट लें. और दस पांच आदमियों को कतल भी कर दे फिर मुलजिम पकड़े जायें, और उपरोक्त सफाई दें कि वास्तच में इसका भी प्रयोजन है। इनको दण्ड देना था और इनके शत्रुओंको पुरस्कार, तथा डाकुओंका मुजारा हो गया इसमें बुराई क्या हुई. उस समय लेखक महाशयको समझमें इस प्रयोजनवादका प्रयोजन आ सकता है। उस समय ये लोग कांगडे और कोइटे के भूचाली का तथा धंगालके अत्याचारोंमें भी ईश्वरका विशेष प्रयोजन है यह कहना भूल जायेंगे और न्याय को दुहाई देने लगेंगे। यदि यह प्रयोजनवाद मान लिया जाये तोन तो कोई अन्याय रहेगा और न अत्याचार । इन भले श्रादमियोंकी दृष्टि में बलात्कार और जबरन ससरीव नष्ट करने वा जबरन धर्म परिवर्तन जैसे पापों का भी कुछन कुछ ईश्वरीय प्रयोजन है । इस लिये यह प्रयोजनवादको हमारा दूरसे ही नमस्ते है । यदि आप लोगोंको प्रशन्न करने के लिये यह मान भी लिया जाये कि इस संसारकी घटनाओंका कुछप्रयोजन
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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