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बांधा है वह निश्चित रूप से नहीं है किन्तु अन्दाजा है। उसमें डिंयम की बनावद से श्राज तक का काल निश्चित है किन्तु आगे पीछे का काल अज्ञात है ।आईन्ट रन का सापेक्ष वाद तो जैनों के नयवाद या स्याद्वाद से बहुत मिलता हुआ है। जैन द्रव्य गुण तथा पोय की भिन्न भिन्न मानते है । एक अपेक्षा से भिन्न है नो दूसरी अपेक्षा से अभिन्न है। आइन्स्टाइन का पदार्थ जैनों का द्रव्य है और शक्ति पर्याय है । आइन्स्टाइन के अन्दाज में अनिश्चिन शर्त है कि यदि ऐसा हो तो ऐसा होगा किन्तु जैनों के सि
द्धान्त में शर्त नहीं है। उसमें निश्चित यात है कि पीयों का चाहे कितना ही परिवर्तन हो किन्तु द्रव्य न तो परिवर्तित होता है और न घटता ही है । द्रव्यांश ध्रु५-विधा है . ' स्टाहार कथनानुसार हजारों वर्षों में गरमी खतम हो जायगी। पदार्थ और शक्ति को एकान्त अभिन्न मानने पर यह हिसाव लागू होता है किन्तु अनेकान्स भादाभेद पद में लागू नहीं पड़ सकता । शक्ति चाहे कम ज्यादा होती हो किन्तु पदार्थ द्रव्य का नाश तो अनन्त काल में भी नहीं हो सकता । वस्तुतः गर्मी या शक्ति का जितना प्रमाणमें व्यय या नाश होगा उतनी ही श्रामदनी भी हो जायगी । क्योंकि लोक में गर्मी शक्ति के द्रय अनन्तानन्त हैं। द्रव्य उत्पाद व्यय और ध्रौव्य स्वरूप है । इस लिये जर्मन विद्वान इल्म होल्टस को जो शक्ति नई उत्पन्न नहीं होती और पुरानी नष्ट नहीं होती है. मान्यता है वह ठीक है और वह जैनों को अक्षरशः लागू पड़ती है। किं बहुना ?
शक्ति का खजाना सूर्य ईश्वर वानी कहते हैं कि ईश्वर जगत् उत्पन्न करता है और जीवों का पालन करता है, सोहार भी ईश्वर ही करता है अर्थात् ईश्वर सर्व शक्तिमान है।