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________________ ( ६६८ ) जगत का पालन भी हो रहा है। इस बात के मानने में लाघव होता है कि जो कर्त्ता हैं वहीं पालक है इसी प्रकार यह भी माना जाता है कि वही एक दिन जगतका संहार भी करेगा। इस कर्त्ता पाता संहरताको ईश्वर कहते हैं। ईश्वर प्रत्यक्ष का विषय नहीं है, अतः उसका ज्ञान अनुमान और शब्द प्रमाणसे ही हो सकता है। जब तक सर्व सम्मत श्राप्त पुरुष निश्चित न हो जाय तब तक शब्द प्रमाणसे काम नहीं लिया जासकता | विभिन्न सम्प्रदायोंमें जो लोग प्राप्त माने गये हैं उनका ईश्वर के सम्बन्ध में ऐक्य मत नहीं है। जो लोग के अस्तित्व को स्वाकार नहीं करते उनमें कपिल, जैमिनि बुद्ध और महावीर जैसे प्रतिष्ठित आचार्य हैं । अतः हमको शब्द प्रमाणका सहारा छोड़ना होगा | अथ के अनुमान था। इसमें हेतु व लाया जाता है कि प्रत्येक वस्तुका कोई न कोई रचयिता होता है इसलिये जगत का भी कोई रचयिता होना चाहिये। इस अनुमान में कई दोष हैं। हम यदि यह मान लें कि प्रत्येक वस्तुका कर्ता होता है तो फिर वस्तु होने से ईश्वरका भी कर्ता होगा और उस का कोई दूसरा कर्ता दूसरे का तीसरा ! यह परम्परा कहीं समाप्त न होगी । ऐसे तर्क में अनवस्था दोष होता है। इससे ईश्वर का अस्तित्व सिद्ध नहीं होता। यदि ऐसा माना जाय कि ईश्वर को कर्त्ता की अपेक्षा नहीं है तो फिर ऐसा मानने में क्या आपत्ति है कि विश्व को कर्त्ता की अपेक्षा नहीं है ? फिर ऐसा मानना कि प्रत्येक वस्तु कर्तृक होती है साध्यसम है। सूर्य चन्द्रमा कर्तृक हैं इसका क्या प्रमाण है। समुद्र और पहाड़ को बनाये जाते किसने देखा ? जब तक यह सिद्ध न हो जाय कि प्रत्येक वस्तु का कत होता है तब तक जगत का कोई कर्त्ता है ऐसा सिद्ध नहीं होता । जो लोग जगत् को कटक मानते हैं उनके सामने अपने 1
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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