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________________ सकते हैं। जो श्रात्मा मोक्ष के प्रति पहुंचने के लगभग आ जाती है वही अवतार है । इनके विषय में उसी जन्म में सम्पूर्णता मानने की आवश्यकता नहीं । ( महात्मा गान्धी के मिति पत्र पृष्ट ४७) भगवद्गीताका अवतरण कत को न कर्माणि लोरमा जाति भावः । न कर्म फल संयोग, स्वभावस्तु प्रवर्तते ॥ गीता ५-१४ जगत का प्रभु न कर्तापन रचता है, न कर्म रनता है, म कर्म और फलका मेल साधता है । प्रकृति ही सब करती है। टिप्पणी ईश्वर का नहीं है 'कर्म का नियम अटल और अनिवार्य है, और जो जैसा करता है, उसको वैसा करना ही पड़ता है । नादसे कस्यचित्पापं, न चैव सुकृतं विभुः। अज्ञानेनावृतं ज्ञानं, तेन मुह्यन्ति जन्तवः ।। ५-१५ ईश्वर किसीके पाप या पुण्यको अपने ऊपर नहीं प्रोढ़ता है। अज्ञान द्वारा ज्ञान हक जानेसे लोग मोहमें फंस जाते है। टिपणी-अज्ञानसे 'मैं करता हूँ" इस वृत्तिसे मनुष्य कमबन्धन बाँधता है, फिर भी वह भले बुरे कर्मका आरोप ईश्वर पर करता है, यह मोह जाल है। श्री मत परमहंस सोऽहं स्वामी का अभिप्राय जो वेदको ब्रह्मसे उत्पन्न मानता है, उसके लिये बाईबिल को ईश्वरके द्वारा निर्माण किया हुआ न मानमा. अथवा जो लोग
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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