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________________ होता है । जिस प्रकार -जहाँ जहाँ धूम है यहाँ यहां बन्हि होती है औरजहाँ जहाँ बन्हि नही होती वहां वहां धूम नहीं होता । इसी को अन्यय और व्यतिरेक भी कहते हैं परन्तु आपके अनुमान में न अन्वय है और मध्यतिरेक. क्योंकि आप ऐसा कोई स्थान नहीं मानते जहां ईश्वर को बगैर दिध कर्म का फल न मिलता हो मगर आप ऐसा मानते हैं कि ईश्वर तो वहां है परन्तु कर्म फल नहीं देता जैसा कि वेद में कहा है-"पादोऽस्य विश्रा भूतानि त्रिपादस्यामृतदिति" अर्थात परमात्मा के चार पाद हैं. एक पाद में जगत है और बाकी तीन पाद जगत से शून्य है। अभिप्राय यह है कि ईश्वर न तो कम का फल देता है न सृष्टि रचता है इसी को उपनिषद्कारों ने नाम ब्रह्म कहा है। ___ अतः ईश्वर का फनप्रदाता है. यह अनुमान से सिद्ध नहीं हो सकता । यदि कहीं शब्द प्रमाण है, तो यह साध्यसमा हेत्वाभास होगा। क्योंकि अभी तक यही सिद्ध नहीं हो सका कि जिस को तुम शब्द प्रमाण मानते हो, वह प्रमाण कहलाने के लायक है भी या नहीं ? अतः किसी भी प्रमाण से ईश्वर कम फलदाता सिद्ध नहीं हुअा । और यदि हम इन तमाम प्रश्नों को न भी उठायें तो भी आप के पास इसका क्या उत्तर है कि श्राप के माने हुए जज आदिकी तरह शरीरी अल्पज्ञ और एक देशी कर्मफलदातासे भिन्न निराकार फलदाता होता है। क्योंकि हम अशरीरी सर्वज्ञ एवं सर्वव्यापकको कर्मफल दाता नहीं देखते । अतः आपका माना हुधा सर्वज्ञ, सर्वव्यापक परमात्मा कर्मफल दाता सिद्ध नहीं हो सकता। __ यदि हम थोड़ी देर के लिए यह मान भी लें कि ईश्वर कमफल देता है तो भी यह प्रश्न शेष रहता है कि ईश्वर कर्म फल क्यों और कैसे देता है।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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