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________________ ( ६७५ ) इसमें क्या बिगड़ता है। वह क्यों इनको सुखी देख कर जलता है ? अगर कहो कि संसार में गड़बड़ फैल आवेगी तो ईश्वरको इसकी चिन्ता क्यों है ? यदि जीव दुःख नहीं भोगना चाहताइसलिये परमात्मा फल देता है. तो पुण्य का फल सुख क्या परमात्मा के बगैर दिये भोग लेता है। यदि ऐसा है तो आपका यह हेतु भागा सिद्ध हुआ । जीव दुःख तो भोगना नहीं चाहते. परन्तु दुःखको सुख समझ कर प्राप्त करनेकी इच्छा और प्रयत्न तोही कर रहै। स्वयं ऐसे अनेक बीमारों को देखा है जिनको यह अच्छी तरह विदित था कि अमुक स्वादिष्ट था गरि बीज खाने से हमें अत्यन्त दुःख भोगना होगा, परन्तु ये बार बार खाते थे और बार बार महान कष्ट भोगते थे। एक तपेदिक के बीमार को डाक्टरों ने-धों ने प्रारम्भ से ही मिर्च छोड़ने का किया । परन्तु वह न छोड़ सका और अन्त में अनेक कठिन यातनायें भोगता हुआ, इस शरीर को छोड़ कर संसार से चल दिया । उपरोक्त घटनाएं इस बातका प्रत्यक्ष उहर है कि जहाँ जो दुःख को सुख समझ कर भी उस का ग्रहण कर लेता है, यहाँ आदत से लाचार हो कर दुःख को दुःख लमझ करभी उसको बार बार ग्रहण करता है; और अनेक प्रकार के महान कष्टों को सहन करता है, फिर आपका यह कहना कि जीब स्वयं दुःख भोगना नहीं चाहता क्या अर्थ रखता है ? हम इन तमाम प्रश्नोंको न भी छेड़ें तो भी यह विचार हृदय में अवश्य उत्पन्न होता है कि ये दुख-सुख हैं क्या पदार्थ ? ये द्रव्य हैं ? या गुण हैं यदि द्रव्य हैं तो इनका गुण क्या है ? यदि कही गुण हैं तो फिर किसका गुण हैं ? परमात्मा का गुण तो आप मानते ही नहीं । प्रकृति जड़ हैं उस में सुख दुख के होने का प्रत्यक्ष प्रमाण विरोधी है। रह गया जीव तो क्या जीव का
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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