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________________ वेमना ( दिल चस्पी न लेकर ) करता हैं इस यातका प्रभाव भी उस खींचे हुये और दृध पानी की तरह अपने आस्मा के साथ मिलाये हुये कर्म पर पड़ता है । तदनुसार उस कर्म में योड़े या बहुत समय नक, कम या अधिक सुख दुख आदि फल देने की शक्ति पड़ जाती है। जैसे एक मनुष्य अपना यदला लेने के लिये अड़े कोध के काम किमी को मार सहा मनुष्य का समाये हुये "असाता बेदनीय' कम में लम्बे समय तक. बहुत ज्यादा दुख देने का असर पड़ेगा और जो मनुष्य अपनी नौकरी की खातिर अपने मालिक की आज्ञा से लाचार होकर किसीको मार रहा है, वह भी साता वेदनीय कर्म बांधेगा किन्तु उसमें थोड़े समय तक हल्का दुख देने की शक्ति पड़ेगी। एक नौकर पुजारी भगवान की भक्ति पूजा ऊपरी मन से करता है उसको पुण्य कम थोड़े समय तक हल्का फल देने वाला बंगा जो स्वयं अपनी अन्तरंग प्रेरणा से बड़ा मन लगाकर भक्ति पूजन करता है उसका कमाया हुश्रा पुण्यकर्म अधिक समय तक अधिक सुखदायक फल देगा । समय की इमी सीमा (मियाद। को स्थिति और देने की क्रम अधिक शक्ति को अनुभाग कहते हैं। कर्म, फल कब देते हैं कम बन जाने के पीछे तत्काल ही अपना फल नहीं देने लगता किन्तुं कुछ समय बीत जाने पर उदय में आता है । जैसे हम भोजन करते हैं भोजन में खाये गये दूध, चावल . रोटः, फल आदि पदार्थ पेंट में पहुंचते ही रस नहीं बन जाते हैं कुछ समय तक पेंट की मशीन पर खाया हा भोजन पकता है. तब उस भोजन का रस, खून आदि बनता है । इसी तरह कामोरण स्कन्ध श्रात्मा के
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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