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________________ ( ६६३ ) कमों के भेद वैसे तो जीवों की अगणित ( वेतादाद ) तरह की क्रियाएँ होता है तदनुसार कर्म भी अगणित तरह के बना करते हैं। किंतु उनके मोटेरुपसे आठ भेद होते हैं । १ - ज्ञानावरण - दर्शनावरण, ३- वेदनीय ४- मोहनीय. ५ - आयु. ६- नाम - गोत्र. ८- अन्तराय । ५ १- ज्ञानावरण कर्म - यह कर्म है जो आत्मा के ज्ञान गुणको छिपाता है, उसको कमकर देता है। आत्मा में शक्ति है कि वह संसार का भूत ( गुजरा हुआ जमाना ) भविष्यत् ( श्राने वाला जमाना ) और वर्तमान ( मौजूदा वक्त ) समयकी सब बातोंको ठीक जान लेने किन्तु ज्ञानावरण कर्मके कारण आत्माकी वह ज्ञान शक्ति प्रगद नहीं होने पाती । जिस समय कोई मनुष्य दूसरे मनुष्यके पढ़ने लिखने मे रुकावट डालता है. पुस्तकका और पढ़ाने सिखाने वाले गुरुका अपमान करता है, अपनी विद्याका अभिमान करता है। तथा इसी प्रकार के और भी ऐसे अनुचित कार्य करता है जिससे दूसरेके या अपने ज्ञान बढ़ने में रुकावट पैदा हो तो उस समय उसके जो कार्मारण पुद्गल आकार कर्म बनता है, उसमें उसकी ज्ञान शक्तिको दबाने की तासीर पड़ती है। यदि कोई पुरुष अपनी अच्छी नियत से यह उद्योग करे कि सब कोई पढ़ लिखकर विद्वान बने, कोई मूर्ख न रहे तो उस समयकी उसकी उस कोशिश से उसका ज्ञानावरण कर्म ढीला हो जाता है। उसकी ज्ञानशकि अधिक प्रगट होती है । आज हम जो अपनी आंखों से किसी को मूर्ख किसी को विद्वान किसीको बुद्धिमान और किसी को बुद्धिशून्य देखने है, उसका कारण ऊपर कहे हुए दो तरह कार्य हा I
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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