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________________ ५६. हजारों जन्मा तक अमर चिन्तक (पुरुष) या पशु मनुष्य को ऊपर लेजाने में हजारों जन्मों तक परिश्रम ( मेहनत ) करता रहता है जहां तक कि यह देव से मिलने के योग्य न हो जावे । क्रिमी एक जन्म में कदाचित् काय्य का केवल तनिक सा अंश पूरा हो पाता है तो भी जन्म होते समय जो वासनिक शरोरकी बनावट थी उसमें सुधरनेर अंतक ल के समय तक पशुपने में कुछ न कुछ कमी हो जाती है। आगे जो जन्म होगा उममें इस सुधरे हुए नमूने का मनुष्य जन्मेगा और मरने पर उसे घासनिक नमूना कुछ और भी सुधरा हुमा होगा अर्थान् जसमें पशुपन घटता जायेगा । योही बार बार जन्म जन्म में फल्पांतरों तक सुधार होता चला जावेगा । इस बीच में अनेक भूल चूक भी होती जायेगी। परन्तु यह संभल रूमल कर ठीक होती आयेगी। इस बीचमें अनेक घाव लगलग कर धीरे धीर भरते जायेंगे परन्तु इन सबके उपरांत उन्नति बराबर होती चली जावेगी, पशुपन घटता जावेगा और मनुध्यता बढ़ती जावेगी । घृतान्त उस ऋम का है जिससे मनुष्य की उन्नति चलनी है और जीवात्मा का कार्य देवीगति तक पहुंचने का सम्पूर्ण होता है । इस क्रम में एक दरजा ऐमा पाता है कि वासना शरीर कुछ कुछ पारदर्शक होजाते हैं जिससे इनमें अमर चिन्तक ( पुरुष ) की मलक पड़ने लगती है, और कुछ यह भान होने लगता है कि ये ( वासना शरीर ) कोई अलग जीव नहीं है किन्तु किसी अमर और सदा रहने वाली वस्तु से लगे हुये हैं । इनको अभी पूरार यह तो नहीं समझमें आता कि इनका अन्तिम लक्ष्य क्या है परन्तु जो : काश इनपर पड़ता है उससे इनमें कंपन और अकुलान होने लगती है जैसे कि वसंत ऋतुमें कलियां अपने बेठन में इसलिये अकुलाने लगती हैं कि वेठन को फाड़कर बाहर निकलने और सूरज के उलेले से बढ़ने लगे।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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