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________________ विचार या काम अथवा वासना की भावना के सपमें उत्पन्न होने हैं फिर में वासनिक रूप धारण कर लो और भन्न इस भूलोक में प्रत्यक्ष कर्म या घटना के रूपमें प्रकट हो जाते हैं। यों जो बातें या घदनाएं यहाँ होती हैं वे उन कारणोंके फल हैं जो कि मन में पहले से विद्यमान होते हैं । यह शरीर भी गूद तत्व झानके अनुसार ऐसा एक फल है और इसका सांचा वासनिक शरीर या लिंग शरीर है जिस शब्दसे हमारे विद्यार्थी परिचित हो गये होंगे इस बातको भली भांति समझ लेना चाहिये कि वासनिक सामग्री का शरीर सांचेका काम देता है जिसमें स्थूल सामग्री ढाली जाती है. और अगर पुनर्जन्मकी शैलीको कुछ भी समझना है, तो इस बातको थोड़ी देर के लिये मान लेना चाहिये कि पहलेसे विद्यमान त्रासनिक सांचेमें स्थूल कणोंके जमनेसे स्थूल शरीर बनता है। __५८-अब चिनकके विचारसे जो रूप अर्थान चित्र बनते हैं उनकी ओर लौदते हैं। यह विचार साधारण मनुष्य, अशुद्ध मन अर्थात् काम करता है क्योंकि शुद्ध मनके कामके तो हाल कुछ समय तक हमें बहुत चिन्ह मिलनेको पाशा नहीं हो सकती है। हमारे साधारण रात दिनकी रहनगतमे हम सोचा करते हैं और इससे हम विचाराकार अथवा मानसिक चित्र बनाया करते हैं। जैसा कि किसी महात्मा ने कहा है * मनुष्य जहां जहां होकर फिरता है वहां प्राकाशमें बराबर अपनी ही दुनियां बसाता रहता है जिसमें उसके मनकी तरंगें, कामनाएं, अकस्माती वेग. और काम क्रोधादिकी भीड़ रहती है। ४६-[ इसका दूसरे लोगों पर क्या असर पड़ता है उसका संबंध 'कर्म के साथ है और उसका वृत्तांत आगे दिया जावेगा।] ६९ देग्यो अकल्ट कल ईस पुन्तक पृष्ठ ६०
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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