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________________ क्या पदार्थो में विद्यमान है। यदि ऐसा हो तो प्रत्येक पदार्थ प्रत्येक व्यक्ति को अनुकूल ही या प्रतिकूल ही प्रतीत होना चाहिए। परन्तु अनुभवसे यह सिद्ध है कि प्रत्येक पदार्थ न तो प्रत्येक के अनुकूल ही है और न प्रतिकूल ही, अतः यह सिद्ध हुमा कि अनुकूलता तथा प्रतिक लता. पदामि नहीं है । यथा एक व्यक्तिको पानी पीनेमें श्रानन्द पाता है अब अगर पानी में ही प्रानन्द है तो उसे हमेशा पानी ही पीते रहना चाहिये क्योंकि उसे आनन्द की इच्छा है और पानी में श्रानन्द है और एक व्यक्ति यदि पानी में डूबकर मर जाय तो उसे कहना चाहिये कि वह प्रानन्दमें डूब कर मर गया है । परन्तु यह बात लोकविरुद्ध है। अतः यह सिद्ध हुआ कि पदार्थ में आनन्द नहीं है अपितु आनन्द आत्मामें ही है। अतएव शास्त्रकारोंने कहा है "संतोषादनुत्तम सुखलामः” अर्थात-संतोषसे अत्युत्तम सुखकी प्राप्ति होती है। और "तृष्णाति प्रभवं दुःखं" अथत दुःस्त्र का मूल कारण तृष्णा ही है। ___ तृष्णा और संतोष आत्मा की स्वाभाविक और वैभाविक आदि परिणतियों का ही नाम है । अतः सुख दुःख कोई वस्तु विशेष न होकर आत्माने कल्पित किए हैं। मनुष्य के जितनी ही तृष्मा अधिक होगी उतना ही वह अधिक दुःखी होगा. यही उस कर्मवस्थ रूपी आत्मा का फल है और इसी का नाम स्वगत प्रतिक्रिया है। इसीसे पाप और पुण्यको भी समझ लेना चाहिए अर्थात् जो कर्म आत्मा पर अधिक गाढ़ दीर्घकालिक द्रव्य कर्म का बंध बांधते हैं वे सन्न पाप हैं और जिनसे पाप रूपी द्रव्यकमकी सम्बर और निजरा होती है उसीको पुण्य कहते हैं। जिस प्रकार के द्रव्यकर्मका हम अंध करते हैं वह द्रव्यकम उसी प्रकारले स्थूल सूक्ष्म शरीरकी रचना करते है और उसी प्रकारके स्वभावोंका निर्माण होता। मनुष्यमें पूर्व द्रव्य कर्मानुसार
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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