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मन्वन्तर होता है तथा १४ मन्यन्तर एक सृष्टिके होते है एवं इतना ही काल प्रलयका होता है. अर्थात् चार अरब ३२ करोड़ वर्षकी सृष्टि होती है और उतनेही कालका प्राय होती है वर्तमान सृष्टि ६ मन्वन्तर तो बीत चुके तथा सातवें मन्वन्तर की २७ चतुर्युगियां भी बीत चुकीं अब २८ वीं चतुर्युगी बीत रही हैं इस हिसाब से सृष्टिकी उत्पत्तिको हुए आजतक १७६७२६४६०२३ सौ वर्ष हुए हैं। इसमें कल्पकी सन्धि भी गिनी गई है। इन प्रमाणों पर विचार
इन प्रमाणों पर दो दृडियोंसे विचार किया जा सकता है। (२) ऐतिहासिक दृष्टि से (२) ज्योतिः शास्त्रकी दृष्टि से अगर हम ऐतिहासिक दृष्टिसे इस पर विचार करें, स्वदेशी तथा विदेशी सभी सामयिक ऐतिहासिक विद्वान इसमें एक मत है कि यह सतयुग आदिको वर्तमान मान्यता अत्यन्त आधुनिक है। प्राचीन ग्रन्थों में तथा प्राचीन खुदाई आदिमें इसका किसी स्थान पर उल्लेख नहीं मिलता।
(१) गुरुकुलके सुयोग्य स्नातक पं० जयचन्दजी ने भारतीय इतिहासकी रूप रेखा में इसी मतकी पुष्टिमें अनेक युक्तियाँ दी हैं ।
(२) शिव शंकर काव्यतीर्थ जो कि आर्यसमाज के सर्व मान्य विद्वान थे. उन्होंने भी 'वेद ही ईश्वरीय ज्ञान हैं' नामक पुस्तक में यह स्पष्ट लिखा है कि यह कलियुग आदिकी मान्यता अवैदिक है। इनके अतिरिक्त पं० गोपीनाथ शास्त्री चुलैटने एक ग्रन्थ युग परिवर्तन नामसे ही लिखा है। उसमें विद्वान लेखकने राबर्टसिवेल, मैक्समूलर बेवर आदि पाश्चात्य विद्वानोंका विस्तार पूर्वकमत संग्रह किया है।
खुदाई में सबसे पुराना लेख जिसमें कलियुगका संकेत है राना