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________________ हिंसक धर्मका विरोध रूपमें प्रचार किया था। प्रतीत होता है कि इसी कारणसे प्राणोंने ऋपिलको नास्तिककी उपाधि दी थी,अभिप्राय यह है कि जिस कपिल मुनिकी वेद स्तुति करता है।वही वेदका विरोधी है। स्वयं दमें ही पक्ष रवि दुसा कि विरोध करता है। फिर किस ऋषिको शास्तिक मानाज-य और किसको नास्तिक मानस जाय । सब दार्शनिकोंको सत्यार्थ प्रकाशने नास्तिक कह ही दिया पुराणकारोंको तो वह गाली देकर मी सन्तुष्ट नहीं होते जय यह बात है तो जैनोंको नास्तिक लिखना क्या कठिन था । तैतरीय ब्राह्मण ३ । ३ । । । ११ में बोदोंको प्रजापतिके केश बताया है अर्थात बाल (केशा की तरह बेद भी व्यर्थ हैं। (प्रजापते वा एतानि श्मश्रुणि यवेदः ॥) इसी लिथे कौत्स्य ऋषि ोद मन्त्रोंको निरर्थक मानता था । निन्दा सत्यार्थ प्रकाश पृ० ६५ में निन्दा स्तुतिके विषयमें लिखा है कि गुराँमें दोष. दोषों में गुण लगाना वह निन्दा है और गुणोंमें गुण दोषाने दोपोंका कथन करना स्तुति कहानी है। अर्थात् मिश्या भाषणका नाम निन्दा है और सत्य भाषण का नाम स्तुति है। यदि इस कसोटी पर कसके देखा जाय तो श्री स्वामी दयानन्दजी और आर्यसमाज ही प्रथम श्रेणी के नास्तिक ठहरते हैं क्योंकि इन्होंने ही कोदोकी घोर निन्दाकी है। यथा नोट-इसी लिये मीमांसकों ने उपनिषदों को वेद का बंजर भाग
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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