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________________ (५८६ "द्यावा भूमिजनयन् देव एक भास्ते विश्वस्य कर्ता भुवनस्य गोप्ता" इस पर आधुनिक नैयायिकोंका कारणवाद अवलम्बित है। "अजामेका लोहित शुक्लकृष्णां बहीः प्रजाः मृजमानो मरूपाः अजोंधषो जुषमाणोऽनुशेते जहात्येना मुक्तभोगा मजोन्य। इस पर कपिलका प्रकृति-पुरुषवाद इत्यादि । इसका कारण तो बेदकी ध्यापकता है ( न कि इन दार्शनिकों का चेद मान लेना) जैसा-सदानन्दने अपने वेदान्तसारमें चार्वाक सिद्धान्तको भी..... "सवाएषपुरुषोन्नरसमय:"-"तमेवानुविनश्यति न प्रेत्य संज्ञास्ति' इत्यादि ऋचाओंका उद्धरण करके चैदिक सिद्ध कर दिया। इससे यह तो नहीं कहा जा सकता कि चार्वाक-सिद्धान्त भी वैदिक है । उसो प्रकार व्यास और जैमिनिके अतिरिक्त सभी वैशेषिक प्रभृति दार्शनिक केवल तार्किक हैं, इन्हें वैदिक दार्शनिक नहीं कह सकते तथापि ये लोग आस्तिक दर्शनकार कहे जाते हैं। इसका कारण मेरी दृष्टि में तो यही ज्ञात होता है कि वेद उपनिषद् स्मृति पुराणादि संस्कृत के समस्त वामय-महार्णवमें प्रोत-प्रोत एवं भारतीय संस्कृनिका मेरुदण्ड पुनर्जन्मवाद या परलोक मानने के कारण ही ये सभी चार्शनिक आस्तिक कहे गये हैं और कई जाने चाहिए । इस परिभाषामें केवल चार्वाक महाशयको छोड़ कर जो लोकायत (लोकै; आयतः विस्तृतः) नामसे प्रसिद्ध होकर साधारण जनताके प्राथमिक अज्ञान-कालिक भावको व्यक्त करने
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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