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________________ - - - - - - - - - कारण ईश्वर मानते हैं और कोई २ वैशेषिक प्रक्रियाके अनुयायी भी अपनी प्रक्रियाके अनुसार ईश्वरको जगतका निमित्त कारण मानते हैं इत्यादि" इससे इतना सो स्पष्ट है कि सांख्य और धैशेधिक प्रक्रियाके मूल में ईश्वरका स्वीकार नहीं था। . इतना होने पर भी, श्रागे आकर कुछ लोगोंने ईश्वरका प्रवेश उनमें करा दिया है। ऐसे ही, मीमांसकों में भी कुछ लोगों ने मीमांसा में यह कहकर ईश्वरका प्रवेश कर दिया है कि कर्मोको ईश्वरको समर्पित कर देनेसे मुक्ति हो जाती है'इत्यादि-- ___ 'सोऽयं धोयदुद्दिश्य निहित दोग शिया दे॒तुः श्रीगोविन्दाणबुद्ध्या क्रियमाणस्तु निःश्रेयसहेतुः । (न्यायप्रकाश, पृष्ठ २६७) अस्तु । ___ जो कुछ हो, पर मेरी दृष्टिमें, इन दर्शनोंके प्राधीन वेद-संहिता के यम, सूर्य, प्रजापति, अग्नि और पुरुष तथा उपनिषद्के ब्रह्म, पुराणके ईश्वर, वर्तमान समयके ईश्वर. परमेश्वर, अल्लाह. खुदा म रहें तो कुछ बिगड़ता नहीं. क्योंकि वेदान्त-दर्शन ,जिसके आगे इन सभी दर्शनोंके सिद्धान्त पीछे पड़ जाते हैं) तो ब्रह्म, पुरुप ईश्वर चाहे जो भी कहिए सभीकी सिद्धिके लिये कमर कस कर ही बैठा है । संस्कृन दर्शनों में प्रस्थानत्रयींकी जो प्रथा है, उसका ध्यान न रहनेसे ही ये सब विवाद खड़े होते हैं । वस्तुतः भारतीय दर्शनोंमें दार्शनिकोंने 'शाखारुन्धती न्याय' से अपने अपने विचारोंको व्यक्त किया है, मूल सिद्धान्त में किसीका किसीस भी विरोध नहीं है। जिमकी दधि (दर्शन) में जो वस्तु अवश्त्र प्राप्त थी उसने उसकी अपना की और उसीको प्रधानला दी। अन्यान्य पदार्थोंको उसने अभ्युपगमवादसे अपने दर्शनके विषयों में गौण मानकर स्वीकार या खंडन किया है । इससे यह सिद्ध नहीं होता कि यह पदार्थ सर्वथा मान्य नहीं है।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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