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________________ नपटाने लगता है। प्राण वियोग से अर्थात मृत्यु से इष्ट मित्र सम्बन्धी आक्रोश करने लगते हैं, इसलिये इनका नाम रुद्र है, जो रसाते हैं-कोई प्रान्तरिक्षस्थ घायु विशेष के ही भेद मानते हैं (तैत्तरीयारण्यक) आदित्य-(५२) सूर्य विशेष-दिन के प्रति घंटेका एक एक इस प्रकार बारह श्रादित्य, अधवा बारह मासके बारह सूर्य । (निरुक्त शतपथ)-वे बारह श्रादित्य ये है ५-सविता. २-भग ३-सूर्य. ४--पूषा. ५-विष्णु. ६-विश्वानर, वरुण'. ८-केशी. ह-वृषाकपायी, १०-यम, ११-अजएकपाद् . १८-समुद्र। कहीं पाठ आदिस्य का भी उल्लेख है। 'इमागिर: (20----) में सास आदित्यों दिये गये हैं और सप्तभिः पुत्र (ऋ. १.--) में मानगड नामक आदित्य पाया है। प्रजापति--परमेश्रर (निरुक्त) कहीं संवत्सर' को भी प्रजापति कहा गया है। सूर्य (तिरेय ) अमि ( तैत्तरीय ) कहीं रूप. मान, मन और यज्ञको संघरमर बतलाया है । मीमांसाकार 'शवर' वायु अाफाश आदित्य इन तीनों को संवत्सर मानते हैं । वषट्कार-वौषट् का नाम षषटकार है.-जिस देवताक लिये हवि दी जाती है उस देवता का मन से ध्यान करना ही वषट्कार है (निरुक्त) क्योंकि उसके प्रसन्न होने से सब अभिवांछित फल मिलने हैं (ऐतरेय) शतपथ में यषटकार नहीं है-वहां इन्द्र' को माना है.--कहीं द्यौ और पृथ्वी को माना है। असोमपा, परिचय त्तिरीयारण्यक में निम्नलिखित तेनीसों को असोमप माना है--समिधः, २ जनुनपान अथवा नराशंसः ३-याई
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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