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________________ ( ५६४ ) "श्रात्मनः, आकाशः, सम्भूतः, आकाशादवायुः" वेदान्त सांख्य योग भी शालिवानी मा नौ, नौर, जैन शास्त्रोंने इस मान्यताका भयानक खंडन किया है। वास्तवमें यह भारतीय मान्यता नहीं है यह तो यूनानसे आईहुई सौगात है । क्या शब्द आकाशका गुण है ? इस नौज्ञानिक युगमें शब्दको आकाशका गुण मानना भी अपने हठधर्मका परिचय देना है । रेडियो तथा फोनोग्राफ व सिनेमाने यह सिद्ध कर दिया है कि शब्द गुण नहीं अपितु प्राकृतिक चित्र हैं। आज शब्दोंके चित्र भी लिये जाते हैं। आज उस को गतिका पता है आदि घातें शब्दके । होनेका प्रत्यक्ष खंडन है। इसीलिए जैन शास्त्रोंमें "स. शब्द द्गल श्वित्रः" लिखा है उन्हीं चित्रों को जैन भाषामें शम्द वर्गणा इते हैं। न्याय दर्शन पढदर्शनामें एक यही न ऐसा है जिसको कदर ईश्ववादी समझा जाता है । अतः अब इस दर्शनका विचार करते हैं (गी, रहस्यके पृ१५ में लिखा है, नैयायिक दो प्रकारके हैं। एक ईश्वर वादी तथा दूसरे अनीश्वरवादी अनीश्वरवादी नैयायिकके विषय में एक कथा प्रचलित है जब वह विद्धान अन्तिम शास ले रहाथा तो लोगोंने उससे कहाकि-अब तो ईश्वर ईश्वर जपो तो उसने उत्तर में पीलवः पाल का कहना शुरु कर दिया। परन्तु हमें यहां इस पर विचार नहीं करना है अपितु ऐसहासिक दृष्टिसे पहले सूत्रों . का ही विचार करना है। सूत्रोंके विषयमें सृष्टिवाद और ईश्वर में
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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