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________________ की कथा । अब जरा प्रथम अध्याय परभी विचार करलें । इस अध्यायका अापने एक ही सूत्र दिया है. परन्तु उससे आगे भी ईश्वर खण्डनमें अनेक सूत्रहै। जिनको हमभाष्यसहित पहले लिख चुके हैं । वथा आगे भी लिखेंगे। इसके अलावा तीसरे अध्यायमें ईश्वरके विरोध में जो युक्तियां दीगई हैं उनको यहां क्यों नहीं लिखा गया । यह भी एक रहस्य है। आस्तिकवाद और सांख्यदर्शन आस्तिक बादमें प्रथम अध्याय का वही प्रथम सूत्र पूर्वपक्षमें रखकर उसके अर्थके लिये उससे पूर्व के तीन सूत्र और लिखकर ( ईश्चरासिद्धः । १ । ६३ । ) आप लिखते हैं कि यहाँ यह स्पष्ट होगया है कि यह सब सूत्र प्रत्यक्ष प्रमाण के लक्षणके ही सम्बन्धमें हूँ। ईश्वर सिद्धिका प्रकरण नहीं है। श्रागे आपने यह सिद्ध करनेका प्रयत्न किया है कि योगियों के प्रत्यक्षका तथा ईश्वरके प्रत्यक्षका यहाँ विरोध नहीं है। अपितु यहाँ यह अभिप्राय हैं कि ईश्वर सर्व साधारण प्रत्यक्षका विषय नहीं है। आगे लिखा है कि यहाँ एक बात और स्मरण रहनी चाहिये कि सूत्र में ईश्वरासिद्धेः" शब्द है । 'ईश्वराभावात् . नहीं श्रीन कपिल नास्तिक होते तो कहत । ईश्वर का अभाव होनेमे । अभावके स्थानमें असिद्धि' कहनेका तात्पर्य ही यह है कि प्रत्यक्ष प्रमाणस ईश्वर का सम्बन्ध नहीं। आगे आपने कुछ सूत्र ईश्वरको सिद्ध करने के लिये दिये हैं तथा कुछ वेदोंको अपौरपेय बतलाने के लिये दिये हैं और कुछ सूत्र आपने कर्मफल के लिये दिये हैं । वेद और कर्मफल के विषयमें तो हम भागे यथा स्थान
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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