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________________ ( ५४० ) थी। इसीप्रकार सांख्य मतके साथ २ चार्वाक मतका भी भारत में जन्म हुआ उसने जनता में तर्फ बुद्धि उत्पन्न कर दी । इसीलिए सांख्य विषयक अनेक सिद्धान्तों में लोगों की शंकायें उठने लगों श्रीं । इन शंकाओंने शनैः अपना विकराल रूप धारण किया और जनक मतका चार उमत करने लगा। : अस्तु उपरोक्त कथन से सांख्योंकी प्राचीनता सिद्ध होती है। नाम करण सांख्य दर्शन का नामकरण ही इसके मूल सिद्धान्तका द्योतक है । यह सांख्य, शब्द संख्या से बना है। प्रकृति और पुरुष के विवेक को संख्या कहते हैं । सांख्य दर्शन में इस संख्या अर्थात प्रकृति और पुरुष का विवेक कथन किया गया है। इसलिये इसका नाम सांख्य है । इसके सिद्धान्त उपनिषदों तथा वेदों में भी बीज रूप से मिलते हैं। वर्तमान समय में सांख्य सिद्धान्त के दो प्रसिद्ध प्रन्थ हैं। (१) सांख्यकारिका (२) सांख्य सूत्र, इनमें सांख्यकारिका ही प्राचीन है। यह ऐतिहासिकों का सर्वमान्य सिद्धान्त हैं (श्री शङ्कराचार्य जी आदि प्राचीन आचार्यों ने सांख्य का समालोचना करते हुये कारिका की ही समालोचना की है, अतः सिद्ध है कि उस समय तक सांख्य सूत्रों की रचना नहीं हुई थी। सांख्य दर्शन और सांख्यकारिका दोनों ही ग्रन्थ अनीश्वरवादी है। तथा जगत का कारण एक मात्र प्रकृतिको ही मानते हैं। पुराणोंमें उस प्रकृति को ही शक्तिके रूपमें माना गया है। तथा देवी भागवतमें उसीका नाम देवी है। यही ईश्वरी जननी, माया आदि नामों से विख्यात है ।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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