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________________ क्योंकि भूष्टि कार्यरूप उपादेय है, उपादानके विना उपादेय नहीं बन सकता । मिट्टी हो तभी घट बन सकता है. मिट्टीके विना घड़ाबनते हुए कभी नहीं देखा गया यहाँ ब्रह्मवादी पूर्वपक्षरूपमें कहता है कि आत्मैवैको जगदादावासीत् स एव स्वेच्छया व्योमादि प्रपञ्चरूपेण परिणमति बीजाइव वृक्षरूपेण । चिदेकरसं ब्रह्म कथं जहरूपेण परिणमतीति चेन् न परमार्थतः परिणाम ब्रह्मणः किन्त्यपरिणतमेव परिणतवदेकमेव सदनेकपा मुखमिवादर्शादिष्वविघावशादिवर्तमानमात्मैवान्त्मानं चिद्रूपं जड़रूपपिवाद्वितीयं स द्वितीयेमिक्पश्यति । सेयमविद्योपादाना स्वमप्रपंचान्महदादि प्रपंच सृष्टिः। (शादी०१।११५-११०) _ अर्थ-जगत के आदिमें (प्रलय कालमें ) एक आत्मा ही था। वह आत्मा ही अपनी इच्छासे आकाश आदि विस्तार रूपमें परिणत होता है, जिस प्रकार कि बीज वृक्षरूपसे विस्तृत हो जाता है। शंका-(चैतन्य एक रसरूप)प्रक्ष.जरूपमें कैसे परिणत होसकता है? उत्तर-हम पारमार्थिक पारिणाम नहीं मानते किन्तु अपरिणत होता हुआ परिणस के समान, जैसे कि एक रूप होकर अनेक रूप-दर्पण में मुख दिखाई देता है,विवर्त प्राप्त करता है। अविशाके कारणसे आत्मा ही चिद्रूप आत्माको जड़रूप देखता है। अद्वितीय को सद्वितीयकी तरह चिप को जहरू देखता है अविधाका उपादाम करण वाली स्वप्नापंचवत् मदादि प्रपंचरूप यह सृष्टि है। मीमांसकों का उत्तर पक्ष किमिदानीममन्नेवायं प्रपंच प्रोमितिचेन्न । प्रत्यक्ष विरोधात् । न चाममेन प्रत्यक्ष् वाधः भवति । प्रत्य
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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