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________________ ( ४६४ ) उत्पन्न होनेसे पहले ही पुरुष था ( कठ० ४ । ६) अथवा पहले पर मझ से तेज, पानी और वो (अन्न) यहो तोन तत्व उत्पन्न हुए और पश्चात् उनके मिश्रण से सब पदार्थ बने (छ० ६ । २ । ६) | तव (२१३ १ - १५ ) में अन्तिम निर्णय यह किया गया है, कि आत्म रूपी मूल ब्रह्म से ही आकाश आदि पंच महाभूत क्रमशः उत्पन्न हुए हैं ( तै००२ । १) | प्रकृति महत् आदि तत्त्वांका भी उल्लेख कट (३ ११) मैत्रायणी (६ । १०), श्रवेताश्वर (४ । १०६ । १६) आदि उपनिषदों में स्पष्ट रीतिसे किया गया है। इसमें देख पड़ेगा कि यद्यपि वेदान्त मत वाले प्रकृतिको स्वतन्त्र न मानते हां, तथापि जब एक वार शुद्ध ब्रह्ममें ही मायात्मक प्रकृति-रूप विकार ढगोचर होने लगता है तब आगे सृष्टिके उत्पत्ति-क्रम सम्बन्ध में उनका और सांख्य मत वालोंका अन्तमें मेल हो गया, गया, और इसी कारण महाभारतमें कहा है कि “इतिहास, पुराण, अर्थशास्त्र आदिमें जो कुछ ज्ञान भरा है वह सब सांख्यों से प्राप्त हुआ है" (शां०३०१ । १०८ । १०६) उसका यह मतलब नहीं है, कि वेदान्तियोंने अथवा पौराणिकोंने यह ज्ञान कपिल प्राप्त किया है। किन्तु यहां पर केवल इतना ही अर्थ अभिप्रेत है, कि सृष्टि के उत्पति-क्रमका ज्ञान सर्वत्र एक सा देख पड़ता है। इतना ही नहीं किन्तु यह भी कहा जा सकता है, कि यहां पर सांख्य शब्दका प्रयोग 'ज्ञान' के व्यापक अर्थ में ही किया गया है। कपिलाचार्यने सृष्टिके उत्पत्ति-क्रमका वर्णन शास्त्रीय दृष्टिले विशेष पद्धति-पूर्वक किया है और भगवद्गीता में भी विशेष करके इसी सांख्य कर्म को स्वीकार किया है. इस कारण उसका विवेचन इस प्रकरण में किया जायगा । सांख्योंका सिद्धांत है. कि इन्द्रियोंको अगोचर अर्थात् अव्यक्त
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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