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________________ इसी लिये अतिमें कहा है कि-"मुखाग्निरजायन" अर्थात् मुखसे अग्नि (वाक) उत्पन्न हुई । तथा जो इसका उत्तरीय छिद्र है, वह मन है, वह मेघ है, और कीर्ति व देह का लावण्य है। इस लिये श्रुति कहती है कि "मनसा सृष्टा श्रापक्ष चरुन । इस अतिके अनुसार श्राप (जल) मेघसे ही होने वाले हैं। अभिप्राय यह है कि यहां जल आदि मानसिक भावोंके नाम हैं। सथा इसका जो ऊचे छिद्र है वह उदान है. वह वायु है, वह आकाश है, अर्थात् उदान वायुका नाम वायु और आकाश है। अतः जहां जहां घेदोंमें श्राकाशादिकी उत्पत्तिका कथन है वहां २ उदान वायु की उत्पत्तिका कथन समझना चाहिये । तीन लोक "प्रयो वा इमे लोकाः । श० १।२।४।२।। अर्थात्-तीन ही ये लोक हैं। तस्मात् .. 'त्रयो लोका असृज्यन्त पृथिव्यन्तरिक्ष यौ श० ११११ अर्थात्-उस प्रजापति परमात्माने . . . . 'तीन लोकोंको उत्पन्न किया । पृथिवी अन्तरिक्ष और धुलोक । इन्हीं तीन लोकों में प्रजापतिकी सब प्रकारको सृष्टि चल रही है। ये तीन लोक हमारी दृष्टिसे ही कहे गये हैं। वैसे तो लोक तीन प्रकार के हैं और अनेक हैं। किसी प्राचीन ब्राह्मणका पाठ श्रापस्तम्ब धर्मसूत्र ४। ७ । १६॥ में दिया है। एक रात्रं चेदतिथीन्वाजयेत्पार्थिवॉल्लोकान भिजयति
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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